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यात्रा
चली आ रही है।
संसार की यात्रा पर
दूर- सुदूर से
निरन्तर गतिशील
जीवन की नौका
छू-छु कर
जन्म-मरण के
जर्जरित तटों को ।
सुदीर्घ काल की यात्रा से यात्रा की विकलता से
विह्वल, व्याकुल
मुक्तिबोध होगा
इसी अन्तस् चेतना से
प्राप्त होगा जिस क्षण आत्मा का द्वीप ।
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