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________________ गत सप्ताह ही तमिलनाडू के कारागार से एक ऐसा कैदी छूटा, जो कैद हुआ तब तो किसी हत्या का अभियुक्त था और जब जेल से छूटा, तो सीधा विश्वविद्यालय का प्रोफेसर बना । उसे अपने किये का प्रायश्चित हुआ । उसने कारागार में रहकर ही सारी शिक्षा ग्रहण की। मीडिया ने उसकी विश्वविद्यालय में नियुक्ति की जानकारी दी । इसे कहते हैं जीवन को बदलना, जीवन का रूपान्तरण करना । I 1 स्वयं की जीवन-दृष्टि को सकारात्मक बनाने के लिए हम सबसे पहले अपनी सोच और मानसिकता को सकारात्मक बनाएँ । हम न केवल अपनी सोच को अच्छा बनाएँ, बल्कि हर किसी में अच्छाई ही तलाशें । औरों में अच्छाइयाँ देखना अच्छे व्यक्ति का काम है जबकि किसी में बुराई देखना स्वयं ही बदसूरत काम है । किसी में अच्छाई देखकर हम उसका उपयोग कर सकेंगे, बुराई पर ध्यान देने से हम उसके द्वारा मिलने वाले लाभों से वंचित रह जाएँगे । आखिर दुनिया में ऐसा कौन है जो पूर्ण हो ? कमियाँ तो हर किसी में रहती हैं। औरों में कमियाँ देखना क्या कमीनापन नहीं है ? गिलास को आधा खाली देखकर यह मत कहो कि गिलास आधी खाली है । तुम्हारी दृष्टि उसके भरे हुए तत्त्व को मूल्य दे कि अजी साहब, गिलास तो पूरा आधा भरा हुआ है । गुलाब के पौधे पर नजर पड़े, तो यह न कहें कि गुलाब में काँटें हैं। हमारी दृष्टि गुलाब पर केंद्रित हो । हमारी भाषा हो— काँटों में भी गुलाब है । यही व्यक्ति की सकारात्मकता है । I होंठों पर रहें आशा के गीत हम अपने आप पर आत्मविश्वास रखें। जब काले रंग का गुब्बारा भी आकाश को चूम सकता है, तो हम निराशा के दलदल में क्यों धँसे रहें ! व्यक्ति आशा के गीत गुनगुनाये, विश्वास के वैभव का स्वामी बने । आत्मविश्वास की बदौलत तो बड़े-से-बड़े पर्वत भी लाँघे जा सकते हैं, फिर जीवन की अन्य बाधाओं की तो बिसात ही क्या ! रास्ते पर पड़ी हुई चट्टान हमें यही तो कहती है— 'तुम आगे बढ़ो, चट्टानों की चिंता छोड़ो ।' आगे बढ़ने का जोश हो, तो चट्टानें स्वत: पीछे छूट जाया करती हैं । हम स्वयं में घमंड और अभिमान को स्थान न दें, तो सरलता सदा जीवन की शोभा बनती है । व्यक्ति चाहे कितना भी छोटा क्यों न हो, पर जो बेवक्त में हमारे काम आया, उसे सदा याद रखें और उसके प्रति आभार से भरे हुए रहें । जीवन-दृष्टि सकारात्मक बनाएँ Jain Education International For Personal & Private Use Only ८८ www.jainelibrary.org
SR No.003897
Book TitleLakshya Banaye Purusharth Jagaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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