SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1 और जीवन-शैली से ही प्रभावित होता है । जीवन के गुब्बारे में दी गई हवाई फूँकों से बात न बनेगी, व्यक्ति को अपने विश्वासों, मान्यताओं और दृष्टिकोणों में परिवर्तन लाना होगा; उन्हें सकारात्मक बनाना होगा। जैसे हीलियम गैस भरने से गुब्बारा पूरी तरह ऊर्जस्वित और प्राणवन्त हो जाता है, ऐसी ही प्राणवत्ता का संचार हमें अपने जीवन में करना होगा । बेहतर हो जीवन-दृष्टि क्या हम इस बात पर गौर करेंगे कि हमारा सोच और दृष्टिकोण कैसा है ? निम्न स्तर के दृष्टिकोण को अपनाकर जहाँ हम जीवन का स्तर भी गिरा बैठेंगे, वहीं अपनी मानसिकता को बेहतर बनाकर जीवन को उसकी गरिमा और यशस्विता प्रदान कर सकेंगे । हम अपनी जीवन-दृष्टि को बेहतर बनाकर अपने संपूर्ण जीवन का श्रेय साध सकते हैं । आदमी की सोच और शैली बेहतर हो, तो न केवल वह व्यक्ति महान् है, अपितु हर किसी के लिए वह विश्व के उपवन में खिला हुआ एक सुन्दर - सुवासित पुष्प है । 1 हीरे की कणि है सकारात्मकता मनुष्य से बढ़कर भला और क्या पूँजी हो सकती है ! जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर हम जीवन की पूँजी को और अधिक बढ़ा सकते । पड़ा-पड़ा पत्ता सड़ जाता है और खड़ा खड़ा घोड़ा अड़ जाता है । नकारात्मकता आदमी के दुःखों की धुरी है। हम जीवन के प्रति एकमात्र सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर जीवन के हर दुःख, तनाव और हानि से उबर सकते हैं । नकारात्मकता वह हथौड़ा है, जो हर किसी के शांति के शीशे को तोड़-फोड़ डालता 1 सकारात्मकता हीरे की वह कणि हैं, जो शीशे के अनपेक्षित भाग को हटा देती है और शेष भाग को उपयोगी बना देती है । नकारात्मकता विष है, तनाव और चिंता को बढ़ाने वाली प्रदूषित वायु है । सकारात्मकता सुबह की सैर है यानी एक हवासौ दवा | जीवन में वंशानुगत रूप से मिलने वाले रोग और विकार इस कद्र आत्मसात् हो चुके होते हैं कि उन्हें हटाना, उनसे मुक्त होना व्यक्ति के लिए असाध्य कार्य बन जाता है, पर यदि कैसा भी विकार क्यों न हो या कलुषित वातावरण क्यों न हो अथवा हानि-लाभ की उठापटक क्यों न हो, जीवन के प्रति सकारात्मक जीवन-दृष्टि सकारात्मक बनाएँ Jain Education International For Personal & Private Use Only ८४ www.jainelibrary.org
SR No.003897
Book TitleLakshya Banaye Purusharth Jagaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy