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________________ जीवन का सरलतम मंत्र है । जो किसी भी परिस्थिति में नहीं घबराते, वे भूत बंगले से भी नहीं घबराते । जो भयभीत हैं, वे अपने आस-पास हवा से हिल जाने वाले पत्तों से भी घबरा जाते हैं। इतना ही नहीं, तुम जैसे ही घबराते हो, तुम्हारी शक्ति का क्षय होना शुरू हो जाता है । तुम्हारा पाचन-तन्त्र, हृदय-तन्त्र भी असंतुलित हो उठते हैं । इसीलिए तो कहते हैं मन के हारे हार है और मन के जीते जीत । अब तक जो भी हारे हैं, कमजोर मन के कारण हारे हैं और जो भी जीते हैं, वे अपने मनोबल के कारण जीते हैं। कमजोर शरीर और बलवान मन तो चल जाएगा, पर बलवान शरीर और कमजोर मन कभी भी कारगर नहीं हो पाएँगे। निर्भयता की बीन बजाएँ अगर डरना है तो अपयश से डरो, पाप से डरो, और किसी से डरने की जरूरत नहीं है । जब तक भय निकट न आया हो, तब तक ही उससे डरना चाहिए, पर आ जाने के बाद तो नि:शंक होकर उस पर प्रहार कर देना चाहिए । तुम न मित्र से घबराओ, न परिवार से, न शत्रु से घबराओ, न भूत से । घबराना तुम्हारे स्वभाव में ही न हो । जहाँ घबराए, समझो लक्ष्य की नाव वहीं डूब गई। त्यागें, हृदय की नपुंसकता भय से मुक्ति पाने के लिए पहले वे कारण तलाशने होंगे, जिनसे मनुष्य भयग्रस्त होता है । जहाँ तक मैं मनुष्य के मन को पढ़ पाया हूँ, उसके मुताबिक मनुष्य की पहली जो स्थिति बनती है कि जिसके कारण आदमी भयग्रस्त होता है, वह है मनुष्य की पौरुषहीनता, सत्त्वहीनता, मनुष्य के मन में पलने वाली नपुंसकता। स्वयं में अगर कायरता या नपुंसकता आ जाती है तो आदमी भयग्रस्त होता है । शक्तिहीन होने के विचार मात्र से व्यक्ति भयग्रस्त हो जाता है। जब महाभारत का संग्राम छिड़ने को था, तो अर्जुन जैसा सामर्थ्यवान व्यक्ति भी अपने शस्त्रों को नीचे गिरा बैठा। कृष्ण ने क्या किया? केवल अर्जुन के चित्त में आ चुकी कायरता, नपुंसकता को दूर किया और गीता के रूप में एक महान् संदेश दिया। ____ मुझ पर गीता का प्रभाव रहा है । मेरे हृदय में अभय का दीप जलाने में उसने मदद की है। ऐसा हुआ। बहुत वर्ष पहले की बात है। हम कच्चे रास्ते से माऊंट आबू पर चढ़ रहे थे, यात्रा चल रही थी। न जाने क्यों मुझे यह अहसास हो रहा था कि कुछ अनिष्ट होने वाला है । मैं निरन्तर सचेत, सजग रहा । मैंने सभी को भय का भूत भगाएँ ६० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003897
Book TitleLakshya Banaye Purusharth Jagaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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