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________________ प्रेम-भाव को तो हम और प्रगाढ़ करें । तोड़ें नहीं, जोड़ें। कभी-कभी लगता है कि खत्म हो गया है वह प्रेम जिसको लेकर धर्मों का जन्म हआ। इंसानियत, एकता, भाई-चारा, विश्व-मैत्री का संदेश केवल प्रार्थनाओं और बैनरों पर टॅगने और लिखने भर तक के लिए रह गया है, आम जीवन में इसका कोई उपयोग नहीं रहा है । धर्म उसका होता है जो इसको जीता है, प्रेम करता है । ईसाई वह व्यक्ति नहीं होता जो गिरजाघर में जाकर ईसा मसीह की प्रार्थना करता है, वरन् वह है जो ईसा के प्रेम को अपने जीवन में जीता है। वह व्यक्ति हिन्दू नहीं होता जो राम की पूजा करता है, वरन् वह व्यक्ति हिन्दू है जो राम की मर्यादाओं को अपने जीवन में आचरित करता है। __महापुरुषों का स्मरण, पूजा, प्रार्थना खूब हो गई। मात्र इससे व्यक्ति का कल्याण नहीं होने वाला है। उनके गुणों को अपने जीवन में जीने से कुछ काम बनेगा। माना कि हम आसमान के चाँद-तारों को छू नहीं सकते, उन्हें पा नहीं सकते, मगर उनकी रोशनी में अपने रास्तों की तलाश तो कर ही सकते हैं। माना हम राम, कृष्ण, महावीर नहीं हो सकते, मगर उन जैसा होने का प्रयास तो कर ही सकते हैं, उनकी प्रेरणाओं को हम अपने जीवन का अंग तो बना ही सकते हैं। बचें, प्रतिक्रियाओं से प्रतिक्रियाओं से परहेज रखो । जिसको-जब-जो करना है, उसकी माया वह जाने, तू तो अपनी सोच । तू तेरी संभाल, छोड़ सभी जंजाल । तू अगर औरों की सोचेगा तो अपने आपको डुबो बैठेगा। सब तिरें, सब पार लगें, यह अच्छी बात है, मगर तुम डूबे रहो यह कौन-सी बात हुई ? सारे लोग मुस्कुराएँ, यह अच्छी बात है, मगर तुम्हारे चेहरे पर मायूसी रुंआसापन रहे तो दुःखद है । तुम तो इस बात पर ध्यान दो कि तुम मुस्कुरा रहे हो या नहीं, तुम्हारे चित्त में प्रसन्नता उभर रही है या नहीं । अपनी ओर से जितनी कम प्रतिक्रियाएँ करोगे, उतनी ही अधिक सुख-शांति के स्वामी बनोगे। चित्त में शांति कोई ढिंढोरा पीटने से नहीं आती । वह तो अपने आपको प्रतिक्रियाओं की उठापठक से मुक्त रखने से ही आएगी। लगभग तेरह-चौदह वर्ष हो चुके हैं, मैंने एक संकल्प लिया था कि सूर्यास्त से सूर्योदय तक मौन रहूँगा। चाहे जैसी परिस्थिति आए, चाहे जैसा वातावरण बन जाए, मैं हर हालत में मौन ४७ - लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003897
Book TitleLakshya Banaye Purusharth Jagaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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