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________________ । अगर चाहते हो कि औरों के द्वारा हमारे प्रति सद्व्यवहार हो, तो अपनी ओर से दृढ़प्रतिज्ञ बनो कि मैं अपनी ओर से किसी के प्रति दुर्व्यवहार नहीं करूँगा । अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारे पिता अपना सारा प्यार तुम पर उँडेल दें, तुम भी अपना सारा सम्मान, संपूर्ण श्रद्धा उनके चरणों में समर्पित कर दो I हम याद करें उस दृश्य को जब महावीर के कानों में कीलें ठोकी गई थीं । वे कीलें अकारण नहीं ठोकी गई थीं । यह महावीर की क्रिया की प्रतिक्रिया थी । महावीर ने अपने पूर्व जन्म में अपने ही अंगरक्षक के कानों में खौलता हुआ शीशा डलवा दिया था । इस जन्म में रूप बदल गया, वेश बदल गया, लेकिन कर्म-बंधन नहीं बदले । आज अगर कोई तुम्हारी निंदा कर रहा है तो बड़े धीरज से उसे पचा लो, क्योंकि तुमने कभी किसी की निंदा की होगी। आज हमें लगता है कि हमारे घर में किसी छोटे बच्चे की मौत हो गई है तो हम यही मानकर चलें कि हमने भी कभी किसी छोटे बच्चे की मौत का निमित्त अपने द्वारा खड़ा किया होगा । यह आसमान हमें इसीलिए गोल दिखाई देता है कि हमें लौटाया जा सके वह सब कुछ, जो हमने अपनी ओर से ब्रह्माण्ड की ओर फेंका | क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि बड़े-बड़े मंदिरों के गुंबद गोल क्यों होते हैं ? इसके पीछे वैज्ञानिक तथ्य है। गुंबद गोल होने का कारण यह है कि हम जो मंत्राच्चार करें, वे ही मंत्र हम पर लौटकर बरसें और हमारे वायुमंडल को, हमारे रोम-रोम को, हमारे चित्त और हृदय के परमाणुओं को निर्मल करें । साथ ही कोई भी मंत्र व्यर्थ न चला जाए। अपने जीवन में जिन महानुभावों को भी यह अपेक्षा हो कि वे औरों के द्वारा माधुर्य पाएँ, सौम्यता पाएँ, तो उन्हें चाहिए कि वे औरों के साथ शालीनता से पेश आएँ । कोई और व्यक्ति आपके साथ दुर्व्यवहार करे, आपको गाली-गलौच करे, तब भी आपका फर्ज बनता है कि आप शांत संयत रहें, प्रतिक्रिया व्यक्त न करें । कुलीन और संस्कारित व्यक्ति को निम्नस्तरीय व्यवहार शोभा नहीं देता । आदमी जब उठता है, बैठता है तो उसकी कुलीनता झलकनी चाहिए। कुलीनता का अर्थ यह नहीं है कि तुम किस सलीके से बोलते हो, किस सलीके से बैठते हो, किस सलीके से भोजन करते हो ? आपके खाना खाने का तरीका बता देता है कि आपका स्तर क्या है ? हम अपने हर व्यवहार के प्रति सजग रहें, जागरूक रहें । हमारी जागरूकता हमें व्यर्थ की प्रतिक्रियाओं में उलझने से बचाएगी । प्रतिक्रियाओं से परहेज रखें Jain Education International For Personal & Private Use Only ४४ www.jainelibrary.org
SR No.003897
Book TitleLakshya Banaye Purusharth Jagaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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