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बोझिल मन से किया गया काम और जिया गया जीवन भला किस काम का ! सुखी जीवन का स्वामी तो वही है जो अपने चित्त में किसी तरह का बोझ नहीं रखता, शांत, निश्चित और हर हाल में मस्त रहता है ।
शांति जीवन का सबसे बड़ा वैभव है । जिसके जीवन में शांति नहीं है, वह अकूत खजाने का मालिक होकर भी खिन्न और दुःखी है । इस शांति को पाने के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते, फिर भी वह नसीब नहीं होती, पर पूज्यश्री एक ऐसी कीमिया दवा सुझाते हैं, जो कभी बेकार नहीं जाती और वह है— प्रतिक्रियाओं से परहेज़ । वे कहते हैं कि क्रियाओं का होना स्वाभाविक है, किंतु प्रतिक्रियाओं का होना आत्मनियंत्रण का अभाव है। जो अपने पर काबू नहीं रख सकते, वे ही बात-बेबात में व्यर्थ की प्रतिक्रियाएँ करते रहते हैं । जो अपने जीवन में इस बात का बोध बनाये रखता है कि मैं क्रिया-प्रतिक्रिया के भँवर - जाल में नहीं उलझँगा, वही अपने जीवन में शांति और आनंद को बरकरार रख पाएगा ।
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जीवन की सफलताओं में स्वस्थ-र -सुंदर शरीर की अपेक्षा स्वस्थ-सुंदर मन की भूमिका कहीं अधिक होती है। जिसका मन रुग्ण है, उसकी सोच भी रुग्ण और विकृत होती है । ऐसा व्यक्ति अपने जीवन को नरक बना डालता है । पूज्यश्री कहते हैं कि मनुष्य सोच सकता है, इसीलिए वह मनुष्य है । इससे भी बढ़कर बात यह है कि सोच ही मनुष्य है । मनुष्य की सत्ता से यदि सोचने-समझने की क्षमता को अलग कर दिया जाए तो धरती पर मनुष्य की सत्ता का कोई अर्थ ही नहीं रहेगा, वह एक निर्बल असहाय दोपाया जानवर भर रह जाएगा । व्यक्ति जो भी सोचे, स्वस्थ-सुंदर सोचे; हर बिंदु पर समग्रता और सकारात्मकता से सोचे ।
आदमी का जीवन को देखने का नजरिया अत्यंत नकारात्मक है । नकारात्मकता के विष के कारण उसका जीवन तनाव अवसाद से घिर गया है 1 इससे उबरने का एकमात्र उपाय सकारात्मकता को अंगीकार करना है । पूज्यश्री की नज़रों में यह सर्वकल्याणकारी मंत्र है, जो कभी निष्फल नहीं होता । सकारात्मकता से बढ़कर कोई पुण्य नहीं और नकारात्मकता से बढ़कर कोई पाप नहीं होता । सकारात्मक जीवन-दृष्टि के साथ किया गया पुरुषार्थ निश्चय ही व्यक्ति को लक्ष्य
और करीब ले जाता है । आपको अपनी मंजिल हासिल हो, यही कामना है । बस, लक्ष्य को अपनी आँखों में बसाये रखें और प्रतिपल पुरुषार्थ को प्रेरित करती प्रभुश्री की ओजस्वी वाणी को हर हमेश हृदय में हिलोरें लेने दें ।
- सोहन
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