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औरों के लिए जीवन अपना, बलिदान वो करते ही आए । धरती को दिये जिसने बादल, वो सागर कभी न रीता है । मिलता है जहाँ का प्यार उसे, औरों के जो आँसू पीता है ॥ क्या मार सकेगी मौत उसे, औरों के लिए जो जीता है ! मिलता है जहाँ का प्यार उसे, औरों के जो आँसू पीता है ॥
जिसने विष पिया बना शंकर, जिसने विष पिया बनी मीरा । जो छेदा गया बना मोती, जो काटा गया बना हीरा ॥ नर
है जो है राम,
वारी है जो सीता है ।
मिलता है जहां का प्यार उसे, औरों के जो आँसू पीता है ॥
जिस सागर ने धरती को बादल दिये हैं, वह कभी नहीं सूखता, जिस तरुवर ने लोगों को मीठे फल दिये हैं, वह तरुवर कभी वंचित नहीं रहता, जो सरोवर प्यासे कंठों की प्यास बुझाता है, वह कभी भी रीता नहीं रहता । जो औरों के लिए विष को भी अंगीकार करता है, वही तो शंकर कहलाता है। जीना उसी आदमी का जीना है जो आदमी होकर आदमी के काम आए ।
औरों का दिल जीतें
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