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थे, नाम था—मोहन चंद ढड्ढा । दूसरे व्यक्ति ट्रेन से आए । वे दरवाजे तक पहुँचे होंगे कि श्री ढड्ढा उनके सम्मान में खड़े होकर दरवाजे तक गये और उन्होंने उनके हाथ का सूटकेस खुद लेना चाहा । एक साठ वर्षीय अरबपति का पैंतीस वर्षीय लखपति के प्रति ऐसा व्यवहार देखकर मैं अभिभूत हो गया। इसे ही कुलीनता कहते हैं कि उस आदमी ने अपना पैसा, अपनी उम्र और प्रतिष्ठा को एक किनारे रखा और आए हुए व्यक्ति को खड़े होकर सम्मान दिया। सचमुच, ऐसा करके उन्होंने औरों के दिलों में अपना आदरपूर्ण स्थान बनाया।
___ जब राम के सामने रावण का शव लाकर रखा गया तो विभीषण, मंदोदरी सभी यही सोच रहे थे कि राम इसके भी इतने टुकड़े करवाएगा कि शायद उससे ज्यादा टुकड़े न हो सकें और उन टुकड़ों को कुत्तों-गीदड़ों के आगे फेंक देगा, क्योंकि उसने राम की पत्नी पर गलत नजर डाली थी, मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। राम खड़े हुए, उस शव को देखकर सामने गए, करबद्ध हुए और अपने शरीर का उत्तरीय वस्त्र उतारकर रावण पर डाल दिया । इसे कहते हैं शालीनता और मर्यादा । मंदोदरी
और विभीषण की आँखों से आँसू बह निकले । ऐसा हो आदमी का बर्ताव । मैं राम की शालीनता और मर्यादाओं का कायल हूँ । सार बात समझ लें
सलीके का मजाक अच्छा, करीने की हँसी अच्छी,
अजी जो दिल को भा जाए, वही बस दिल्लगी अच्छी। रिश्तों में हो अपनापन
अगला सूत्र है—रिश्तों में आत्मीयता हो । आदमी बड़े प्यार से जिए, यह मानकर कि जीवन अपने आप में प्रकृति की अनुपम सौगात है । रिश्ता बनाना सरल होता है, निभाना बड़ा कठिन होता है । रिश्ते भले ही कम बनाओ, कोई चिन्ता नहीं, लेकिन जितने रिश्ते बनाए हैं, उन्हें निभाओ । वक्त/बेवक्त में काम आओ। यह बेवक्त ही आत्मीयता की कसौटी होता है । रिश्तों में आत्मीयता होनी चाहिए, केवल औपचारिकता नहीं, टी. वी. वाली मुस्कान नहीं। अगर आप किसी आत्मीय जन के अस्वस्थ होने पर अस्पताल जाते हैं, तो ऐसा न हो कि आपने कुशल-क्षेम पूछी और पाँच मिनट में लौट आए। इससे तो अच्छा होता कि आप वहाँ जाते ही नहीं । वहाँ गये हो तो तीन-चार घंटे बैठो, इस दौरान जो भी सेवा बनती है, आप सेवा करें । चाहे उसको निवृत्ति के लिए जाना हो या उसकी करवट बदलवानी हो,
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ANITARAI लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ
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