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जल जाता है, वाणी गर्म हो, तो हृदय ही झुलस जाता है । अगर आदमी कटुता और चिड़चिड़ेपन के साथ बोलता है, तो कौन आदमी उससे बात करना चाहेगा ? मूल्य इस बात का उतना नहीं है कि आप क्या बोले, बल्कि इसका मूल्य अधिक है कि आप किस तरीके से बोलें, कितनी मिठास के साथ हमने वाणी का उपयोग किया ? व्यक्तियों की कुलीनता उस समय पता नहीं कहाँ चली जाती है जब वे बात-बेबात गालियों का उपयोग करते हैं । गाली उनके लिए तकिया कलाम बन जाती है । वे होली के दिनों में भी गालियों का इतना प्रयोग नहीं करते, जितना आम दिनों में ।
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कहते हैं पहले लोग मिठाई बहुत खाते थे । माना, वे मिठाई खाते थे, पर वे वापस मिठास का उपयोग भी करते । आपको डायबिटीज क्यों है ? इसलिए कि मीठा तो खाते हो, पर वापस मिठास व्यक्त नहीं करते । तुम स्वभाव में मिठास ले आओ, जीवन की हर तरंग में माधुर्य का संचार कर दो, विश्वास रखो, तुम्हारी समस्या हल हो जाएगी ।
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जो आदमी अपनी जुबान पर नियंत्रण नहीं रख पाता, उससे यह उम्मीद नहीं रखी जा सकती है कि वह किसी चींटी को भी बचा पाएगा। जिस आदमी के पास भाषा-समिति का उपयोग नहीं, क्या वह एषणा समिति का उपयोग कर पाएगा? बोलो, मगर प्यार से बोलो । बेमतलब कुछ भी मत बोलो । कोई सलाह माँगे तो दो, वरना मौन रहो । कम बोलना चाहिए जैसे कि कोई आदमी तार देता है, बिलकुल नपे-तुले शब्द हों । अगर व्यक्ति संतुलित शब्दों में अगले तक अपनी बात पहुँचाएगा, तो उसकी ऊर्जा बची रहेगी । एक आदमी दिन में चार बार रोटी खाकर जितनी ऊर्जा बनाता है तो वह केवल एक बार में ही पर्याप्त हो जाएगी, क्योंकि आदमी में ऊर्जा को खर्च करने के लिए जो रास्ते होते हैं, उन पर उसने अपना संयम ले लिया, अपना अंकुश लगा लिया ।
प्यार से बोलो, मिठास से बोलो। एक बार एक महानुभाव कन्हैयालाल सेठिया, बड़े चर्चित कवि हैं, हम सब लोगों के पास बैठे हुए थे । उन्होंने कहा - 'संत आदमी कितना संत होता है, यह तो हम नहीं कह सकते, मगर आपका बड़ा भाई पक्का संत है ।' मैंने पूछा— कैसे ? वे बोले –'कल मैंने इस आदमी को फोन पर गालियाँ दी होंगी, मगर वे मेरी अन्तिम टिप्पणी पर भी शांत रहे और आखिर में बोले–' हाँ सा ।'
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लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ
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