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मनुष्य
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मैं भी हूँ। मैंने देखा कि जब किसी माँ को किसी संतान को जन्म देते देखा और उसकी कोख से बच्चा बाहर निकल आया और बाहर निकलते ही वह रोने लगा तो माँ ने झट से अपना आँचल उघाड़ा और उसको दूध पिलाना शुरू किया । जीवन में देखा गया यह दृश्य सदा-सदा के लिए आनन्दित कर बैठा कि जो प्रकृति, जो ईश्वर मनुष्य को जन्म देने से पहले उसके जीवन की व्यवस्था करता है, फिर हमें किस बात की चिन्ता ! हम जन्म बाद में लेते हैं, माँ का आँचल दूध से पहले भर जाता है । दुनिया में किसी की बेटी अब तक धन के अभाव में कुँआरी नहीं रही है । कोई-न-कोई व्यवस्था बैठ ही जाती है और बेटी पार लग ही जाती है । तू किस बात की चिंता करता है ? मस्त रह, मस्त, हर हाल में मस्त ।
कोई रहे बस्ती में, हम रहें मस्ती में ।
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हर हाल में मस्त रहना, संतुष्ट और प्रसन्न रहना चिंता से मुक्त होने का रामबाण तरीका है । न अतीत की सोचो और न भविष्य की । उपयोग हो वर्तमान का । अतीत की गलती वर्तमान में न दुहरे और वर्तमान में ऐसे बीज न बोए जाएँ, भविष्य में जिनकी फसलों को काटते समय खेद और गिला रहे । वर्तमान का ही ऐसा प्रबन्धन हो कि भविष्य वर्तमान का सुनहरा परिणाम बने ।
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हीनभावना दूर हटाएँ
चित्त का दूसरा बोझ है हीन भावना से ग्रस्त होना । आदमी के भीतर यह बोझ पलता है कि वह हर वक्त अपने आपको हीन भावनाओं से घिरा हुआ पाता है । उसे हर समय यह लगता है कि मैं कायर हूँ, कमजोर हूँ, मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ; मुझमें कुछ नहीं; मैं तुम्हारे मुकाबले क्या हो सकता हूँ? हीनता का यह विचार, यह ग्रंथि आदमी की सकारात्मक सोच, आत्मविश्वास, स्वाभिमान और उसके गौरव को कुण्ठित कर डालती है । आदमी जब किसी दूसरे सुन्दर व्यक्ति को देखता है तो सोचता है कि मैं सुन्दर नहीं हूँ । कभी उसे लगता है कि मैं काला हूँ, कभी लगता है कि मैं कम पढ़ा-लिखा हूँ, कभी लगता है कि मैं अपाहिज हूँ । कभी आदमी को लगता है कि उसके पास पैसे नहीं हैं, मैं कमजोर हूँ । आदमी अपने चित्त में यह सोच-सोचकर अपने चित्त को, अपने मनो-मस्तिष्क को भारभूत बना लेता है कि मुझमें अमुक-अमुक कमी है.
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लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ
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