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________________ और अन्य अंगों की कीमत बाजार में करोड़ों में है । फिर किस बात की हीनता, किस बात का डर ! अपने कमजोर स्वाभिमान को उठाकर किनारे फेंको, अपने हृदय की तुच्छ दुर्बलता को किनारे कर दो। बस, अपने आप पर आत्म - गौरव करो । गौरव इसलिए करो, ताकि तुम हर समय उत्साह उमंग - ऊर्जा से ओत-प्रोत रह सको । टालमटोल की आदल टालें आदमी में टालमटोल करने की भी बुरी आदत होती है । वह हर काम को कल पर टालने का आदी है। वह तो मौका ढूँढ़ता है । सोचता है, 'आज करे सो काल कर और काल करे सो परसों ।' ऐसा करके केवल काम को ही कल पर नहीं टाल रहे, आज को भी कल पर टाल रहे हो । यह कौन - सी गारंटी है कि कल का दिन भी आएगा । आज का कार्य आज ही संपन्न हो । अगर कल पर टालना ही है तो अपने अशुभ भावों को, अपने क्रोध को, अपने द्वेष- दौर्यनस्य को कल पर टालिए और प्रेम, सहानुभूति, करुणा, शांति के कामों को आज ही कर डालिए । शुभ कार्यों को करने के लिए किसी मुहूर्त की जरूरत नहीं होती । मुहूर्त निकलवाना है तो अशुभ कार्यों के लिए निकाला जाए। अगर गुस्सा आ जाए तो उसी क्षण किसी संत और मुनि के पास जाना और कहना कि मैं गुस्सा करना चाहता हूँ, इसलिए कोई ऐसा मुहूर्त निकाल दीजिए कि मैं गुस्सा कर पाऊँ । अगर किसी से प्रेम करना हो तो किसी मुहूर्त की जरूरत नहीं है । अगर तुम कालसर्पयोग में भी प्रेम कर लोगे तो वह 'अमृत सिद्धि' योग हो जाएगा। अगर शुभ कार्य को अशुभ समय में करो तो भी कल्याण होगा और अशुभ कार्य को शुभ समय में करो तो भी अकल्याण होगा। शुभ आज करेंगे, अशुभ को कल पर टालेंगे । बिना लक्ष्य का जीवन कैसा हर आदमी अपने आप में निरुद्देश्य जीवन जी रहा है। चारों ओर भागमभाग है । हर आदमी भाग रहा है, सारी दुनिया दौड़ रही है । करोड़पति भी दौड़ रहा है और रोड़पति भी । पैसा जिंदगी का रास्ता हो सकता है, लेकिन मंजिल नहीं; साधन हो सकता है, साध्य नहीं । नतीजतन आदमी की जिंदगी धोबी के गधे-सी हो गई है, घर से घाट और घाट से घर के बीच ही जिंदगी गुजर जाती है इंसान दस मिनट के लिए बैठे और अपने जीवन के उद्देश्य के बारे में विचार करे लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003897
Book TitleLakshya Banaye Purusharth Jagaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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