________________
बड़ी असफलता है । तुम्हारी सोच यदि सकारात्मक हो जाए, तो तुम सच में ही जीवन के एक गहरे आत्मविश्वास से भर उठोगे और तब तुम्हारा जीवन तुम्हारे लिए बोझ न होगा, वरन् हर रोज जीवन की फिर से शुरुआत करने वाला बचपन भर होगा ।
जीवन बोझ नहीं है
I
बहुत पहले मैंने आपसे एक छोटी-सी कहानी कही थी— बारह वर्ष की एक बालिका तीन वर्ष के बालक को अपने कंधे पर बिठाए हुए पहाड़ी रास्ता पार कर रही थी । बालिका छोटी थी । रह-रहकर उसका सांस भर उठता । पहाड़ी रास्ते से गुजर रहे एक अन्य राहगीर ने उससे कहा- ओह बेटा, कंधे पर बड़ा भार है, थक गई होगी। बालिका ने उसकी निःश्वास भरी आवाज सुनी और उसने विश्वासपूर्वक तपाक से कहा—मिस्टर, तुम्हारे लिए यह भार होगा, मेरे लिए तो यह मेरा भाई है । उसने यह कहते हुए अपने छोटे भाई का माथा चूमा और प्यार से उसे गोद में लेकर दूने उत्साह के साथ आगे बढ़ चली, मंजिल पहुँच गई ।
1
यदि भार माना, तो जीवन का छोटे-से-छोटा कृत्य भी तुम्हारी चेतना को नपुंसक कर बैठेगा; यदि भाई माना, अपना कर्त्तव्य माना, तो तुम्हें भार भी बोझिल नहीं लगेगा तुम अपने आपको उतना ही हल्का पाओगे, जितना पानी में तैरते वक्त अपने आपको । समग्रता से सोचें
व्यक्ति के स्वस्थ सोच के लिए दूसरा संकेत यह दूँगा कि व्यक्ति सकारात्मकता के साथ हर बिंदु पर समग्रता से सोचें, व्यग्रता से नहीं । आवेश और आक्रोश के क्षणों में हमारी जो भी सोच और निर्णय होंगे, वे कभी विवेक और बुद्धिमत्तापूर्ण हो ही नहीं सकते । तुम कितने ही बुद्धिमान क्यों न हो, लेकिन व्यग्रता में लिये गए निर्णय में गुणात्मकता का अभाव ही होगा । मन में पलने वाली आशंका, आवेश और आग्रह व्यक्ति के मार्ग में पड़ने वाली वे चट्टानें हैं, जो आदमी को आगे बढ़ने से रोकती हैं । मन की शांति, औरों के प्रति विश्वास और कदाग्रहों से परहेज हमारी सोच के रास्ते को सदा प्रशस्त और निष्कंटक बनाये हुए रखते हैं ।
हमने कभी अपने आप पर ध्यान दिया कि हम छोटी-छोटी बातों पर क्रोधित और उत्तेजित हो जाते हैं ? सोच पर अपना नियंत्रण न होने के कारण अथवा सोचने की क्षमता का पूरा उपयोग न करने की वजह से ही तो घर, परिवार और समाज के बिखेरे-बंटवारे
स्वस्थ सोच के स्वामी बनें
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
८५
www.jainelibrary.org