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रूपवान, मैं छोटी जाति का, वह उच्च कुलवान ! मन के द्वारा किया जाने वाला यह भेद ही आदमी को हीनता की ग्रंथि से घेर लेता है । रंग-रूप-जाति के ये जो भेद हैं, ये किसी दुनिया के द्वारा स्थापित नहीं, वरन् आदमी के कमजोर मन के द्वारा खड़ी की गई दीवारें हैं। कोई भी आदमी महज अपने रंग-रूप-जाति के कारण ऊँचा और महान नहीं हो सकता। आदमी का जीवन, उसके गुण और उसके कर्म ही आदमी को ऊँचा या नीचा बनाते हैं । आखिर मूल्य सदा ज्योति का होता है, दीयों का नहीं । इससे कहाँ फर्क पड़ता है कि दीया मिट्टी का है या चाँदी का । सच्चा स्वर्णदीप तो वही है, जो ज्योतिर्मय हो, फिर चाहे वह मिट्टी का ही क्यों न बना हो ।
___ किसी पद पर बैठने से व्यक्ति कभी बड़ा नहीं होता, किसी बड़े पद के कारण आदमी भले ही बड़ा कहला ले, लेकिन पद से नीचे उतरते ही हम अच्छी तरह जानते हैं कि उसकी कीमत कितनी रहती है । जिसमें आदमियत है, जिसका अपना गण-वैशिष्ट्य है, वह कभी पद से नहीं, वरन पद ही उससे गौरवान्वित होता है । हम किसी को देखकर अपने आपको छोटा, तुच्छ या हीन मानने की बजाय आत्मविश्वास की उस अलख को जगाएँ, जो हमें अन्य आगे बढ़ते हुए लोगों से और आगे बढ़ा सके; कुछ नया और मौलिक कर दिखाने का मार्ग बता सके।
आज व्यक्ति की पहली आवश्यकता ही उसके खोये हुए आत्मविश्वास को लौटाने की है। भला जिसे अपने आप पर ही विश्वास नहीं, वह दुनिया में क्या कर पाएगा। वह मात्र दब्बू बनकर रह जाएगा। हम बंध्या का जीवन न जीएँ । हमें अपनी
ओर से कुछ नया ईजाद करना है । हम आत्म-विश्वास को हृदय में प्रतिष्ठित करें और वैसा करने के लिए तत्पर हो जाएँ । हृदय में पलने वाली हीनता को हटाना और मन में घर कर चुकी चिंताओं से मुक्त होना जीवन की अस्मिता को प्राप्त करने के प्राथमिक चरण हैं। निर्भयता, निश्चितता और निष्ठापूर्ण जीवन स्वतः ही जीवन को संगीत और सौंदर्य से भर देता है, माधुर्य और आनंद का मालिक बना देता है।
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ऐसे जिएँ
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