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________________ वाली ऐसी शख्सियत कोई विरली ही हुई होगी। उसने केवल प्यासों को पानी, भूखों को रोटी और नंगों को कपड़े ही नहीं दिये, वरन उन लोगों की उल्टियों और दस्तों को भी बेझिझक साफ किया, जो कि उसके कट्टर विद्वेषी और विरोधी थे। ओह, क्या हम महात्मा गांधी से कुछ प्रेरणा लेना नहीं चाहेंगे, जिन्होंने शौचालयों को साफ़ करने वाली अछूत जाति को भी हरिजन (हरिभक्त) की संज्ञा दी और छुआछूत के भेद मिटाकर अपनी सहानुभूति की बाँहों से सबको एक आँगन पर ला खड़ा किया। मैंने तो सुना है कि गांधी ने जब भाईचारा और सफाई का अभियान चलाया था, तो उन्होंने किसी बूढ़े हरिजन के घर-आँगन में भी बुहारी लगाई थी। जब किसी बंधु ने उन पर मल-मूत्र का भरा पात्र उंडेल दिया, तब भी 'हिंदु-मुस्लिम भाई-भाई' के उनके मानवीय अभियान में कोई कमी या कमजोरी नहीं आई । दुनिया में गांधी को न समझा जा सका, इसलिए उनकी हत्या की गई, पर हकीकत में गांधी इस नये युग के महावीर थे। भगवान जीसस का यह कथन कितना भावभीना है कि मैं धरती पर पापियों को उनके पापों का प्रायश्चित कराने आया हैं। उन्होंने स्वयं की इबादत करने वाले लोगों से इतना ही कहा कि मुझे न तो तुम्हारे फूलों की जरूरत है, न मिष्ठान्न और मोमबत्तियों की। तम केवल मेरे कदमों में उन पापों को चढ़ाओ, जिन्हें तुमने अपनी अज्ञान-अवस्था में किये हैं । मैं तुमसे तुम्हारे पाप इसलिए प्राप्त करना चाहता हूँ, ताकि तुम्हें पुण्यात्मा बनाने के लिए तुम्हारे पापों को माफ़ कर सकूँ।। कितने सुकोमल भाव हैं ये कि भगवान हमारे पापों को भी अपने लिए पुष्प बना रहे हैं और हमसे सदा-सदा के लिए हमारे पापों के पुष्पों को स्वीकार करके हमारे जीवन को मानो पुण्यमयी पूजा बना रहे हैं। पूजा-स्थल पुण्यात्माओं के लिए ही नहीं जब किसी बूढ़े गरीब व्यक्ति को यह कहकर मंदिर और गिरजे से बाहर निकाला गया कि यह दिव्य स्थान तुम जैसे पापियों के लिए नहीं है, तो उस बूढ़े फकीर की आवाज़ ने दुनिया भर के मंदिर, मस्जिद और गिरजाघरों के द्वार खुलवा दिये। उसने कहा-पुजारी, अगर मंदिर-मस्जिद के द्वार हम पापियों के लिए नहीं खुले हैं, तो तुम्हीं बताओ कि ये मंदिर-मस्जिद-गिरजे किस पुण्यात्मा के लिए हैं। अरे, पुण्यात्माओं को तो अपने पुण्य बखानने और भोगने के सौ-सौ स्थान हैं । हम पापियों को अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए आखिर यही तो एक ठौर है। ६२ ऐसे जिएँ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003895
Book TitleAise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2001
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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