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और सहानुभूति से बढ़कर सौंदर्य क्या ! जिसके हाथों में सेवा है और आँखों में प्रेम और सहानुभूति का माधुर्य उससे बढ़कर प्यारा इंसान कौन होगा ! ध्यान रखो, तुम्हारी काया जो अंततः राख हो जाने वाली है, अगर उसके द्वारा कुछ मानवता की सेवा हो जाए, तो इसे मृत्यु में से भी अमृत निकल आने वाला अवदान समझो।
___ जब मैं किसी भी पीड़ित को देखता हूँ तो पीड़ा का ऐसा साधारणीकरण हो जाता है कि वह पीड़ा अपनी ही पीड़ा नजर आने लगती है और तब हृदय की करुणा उस पीड़ा को मिटाने के लिए कुछ-न-कुछ करना चाहती है । किसी भी पीड़ित के लिए अपनी ओर से जो कुछ भी हो जाए, वह सब अपनी ओर से सहानुभूति है । हमारी तो वह करुणा है और उसकी वह आवश्यकता।
कोई अगर मुझसे पूछे कि प्रेम, दया और करुणा का व्यावहारिक स्वरूप क्या है, तो मेरा सीधा-सा विनम्र जवाब होगा—आत्मीयता भरी सहानुभूति । ज़रा दुनिया में देखो तो सही कि कितना दुःख और कितनी पीड़ा समाई हुई है । तुम्हें अगर सौ आँखों में सुख दिखाई देता है, तो हज़ार आँखों में दुःख है । सौ भरपूर दिखाई देते हैं, तो हजार जरूरतमंद । दुनिया में अमीरों से ज्यादा गरीब हैं, साधुजनों से ज्यादा असाधुजन हैं, पुण्यात्माओं से ज्यादा पापी हैं । सहानुभूति की ज़रूरत साधुजनों और पुण्यात्माओं के प्रति नहीं, वरन उन दीन-दुःखी-असाधुजन-पापियों के प्रति ज्यादा है, जिन्हें कि वास्तव में इनकी जरूरत है।
सहानुभूति तो स्वयं में साधुता का एक लक्षण है, अपने आप में पुण्य का चरण है। साधुजनों के प्रति सहानुभूति तो असाधुओं के हृदय में भी जग जाएगी । तुम्हारी साधुता की परिपक्वता तो इसमें है कि तुम अपनी सहानुभूति के पात्र उन्हें बनाओ जो दीन-दुःखी, रुग्ण या पापी हैं । तुम रावण में भी राम को ढूँढ़ निकालो । संभव है तुम्हारी सहानुभूति और साधुता का सौहार्द पाकर उनके जीवन का कायाकल्प हो जाए, उनके तन-मन और परिस्थिति का रूपान्तरण हो जाए।
जब तक माँ भगवती मदर टेरेसा ने इंसानियत की सेवा के लिए स्वयं को समर्पित किया, तो उनकी स्थिति ऐसी थी कि वे किसी फूलों की बगिया में नहीं, वरन कंटीली झाड़ियों से घिरे जंगल में खड़ी थी और लोगों ने उस ममता की देवी पर सैंकड़ों इलजाम लगाये, लेकिन वह जानती थी कि उसकी वास्तविक जरूरत उन्हीं को है, जो उस पर इलजाम लगा रहे हैं । सेवा और सहानुभूति का मदर टेरेसा से ज्यादा और कोई जीवंत उदाहरण नहीं होगा। ईसा मसीह के प्रेम और सेवा के सिद्धांतों को अपने जीवन में जीने प्रेम से बढ़कर प्रार्थना क्या !
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