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________________ बन जाते हैं और रंक, राजा । आखिर हर संत का अपना अतीत होता है और हर पापी का एक भविष्य । दंभी तो आखिर हारता और टूटता ही है । जीता और जीतता तो वह है, जिसके हृदय में सरलता और विनम्रता है। हम दंभ का तो त्याग करें ही, यदि हमें लगता है कि हमारे मन में स्त्री-पुरुष के अंगों के प्रति कामुकता है, तो यह सरासर हमारे मन का भद्दापन है । जुबान से क्रोध न करना और आँख को निर्विकार रखना जीवन का सबसे उदात्त गुण है। व्यक्ति ज्यों-ज्यों अपने मानसिक विकारों का त्याग करता है, वह आध्यात्मिक सौंदर्य से ओत-प्रोत होता चला जाता है । आध्यात्मिक सौंदर्य की सबसे ज्यादा सुषमा और शक्ति होती है। उसका आकर्षण ही अनेरा होता है । ईश्वर उसी में साकार होता है, जिसके हृदय का आँगन साफ-स्वच्छ और सुन्दर होता है । तुम अपने को ठीक करके देखो, दिव्यता का ठिकाना तुम स्वयं बन जाओगे । तुम अच्छाई और भलाई की नौका पर चढ़कर देखो, बुराई का सागर अपने आप लंघ जाएगा। लगे बुहारी अन्तर्-घर में Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003895
Book TitleAise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2001
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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