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अभिप्राय है—अंतर्मन में पलने वाली विकृतियों, बुराइयों और पापों का त्याग । जीवन में जो कुछ भी गलत है, उसका त्याग होना ही हितावह है । हमें अच्छाई और भलाई का त्याग नहीं करना है । वे तो जीवन में खिले हुए सदाबहार फूल हैं । त्याग तो हमें उन मनोविकारों का करना है, जो जीवन-विकास के रोड़े और काँटे बने हुए हैं। ___ जीवन की बुराइयों को त्यागने में भला कौन-सी बुराई है । जीवन में वह काम कतई नहीं किया जाना चाहिए कि जिससे स्वयं का अहित हो । अपनी बुराइयों को त्यागना क्या अहितकारी है? अपने पापों को त्यागना क्या अमंगलकारी है ? हमें अपने किसी भी मानसिक विकार का त्याग करते समय भले ही शुरुआत में बेचैनी हो, पर यह त्याग जब अपना परिणाम देगा, तो वह हमारे लिए जीवन का अमृत-वरदान बन जाएगा।
जो शराब पीते हैं, मैं उनसे कहूँगा कि वे शराब का त्याग करें; जो गुण्डागर्दी करते हैं, मैं उनसे उनके आवारापन के त्याग की बात कहूँगा; जो कंजूस हैं, उनके लिए लालसाओं को त्यागने की बात होगी । यह त्याग भले ही शुरुआत में कठिन और कष्टकर लगे, पर आप ही जरा मुझे बताइये कि शराब पीने से कितनों का हित सधता है और कितनों का अहित होता है? कोई व्यक्ति नहीं चाहता कि वह किसी शराबी बाप का बेटा कहलाए । शराब पीकर जब हम अपने परिवार की ही उपेक्षा और घृणा का पात्र बन रहे हैं, तो कोई और भला हमें क्या सम्मान देगा !
आप शराब, भांग, जर्दा-तंबाकू छोड़कर देखिए, आप पाएँगे कि आपका परिवार न केवल इस बात से प्रसन्न हो उठा है, वरन् ऐसा करके आपने उसे बर्बादी के कगार पर बढ़ने से बचा लिया है । आपके तन-मन और बुद्धि की शक्ति पुनः स्वस्थ और स्फूर्त हो चुकी है; आपके परिवार की फुलवारी फिर से चहक-महक उठी है । जरा मुझे बताइये कि यह त्याग आपके लिए कल्याणकारी रहा या कष्टकारी? संभव है ऐसा करने में आपको थोड़ा कष्ट भी उठाना पड़ा हो, पर फायदा सवाया हो, तो उसके लिए चौथाई कष्ट भी बर्दाश्त किया जा सकता है। त्याग से पाएँ जीवन-सौंदर्य
यदि आप गुंडागर्दी करते हैं, तो आप उसे त्यागकर देखिए आप पाएँगे कि समाज में, आम जनमानस में आपके लिए कितनी सहानुभूति जग चुकी है । सम्राट अशोक युद्ध करके महान् नहीं हुए, वरन् युद्धों का त्याग करके भारतीय सभ्यता व संस्कृति के सिरमौर बन गए। जिन्हें लगता है कि वे कृपण-वृत्ति के हैं, वे व्यर्थ ही धन-दौलत को बटोरने में
लगे बुहारी अन्तर्-घर में
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