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लगे बुहारी अन्तर्-घर में
मन के विकारों का त्याग करने वाले जीवन में स्वर्ग जैसा सुख पा लेते हैं ।
मनुष्य घर में निवास करता है, पर यह प्रतीक कितना सटीक है कि मनुष्य का जीवन स्वयं अपने आप में घर ही है । जैसे घर में रहने वाले को घर की साफ-सफाई भी करनी होती है और उसका शृंगार भी । जीवन के आँगन में भी धूल-धूसर जमा हुआ है । जीवन को सुन्दर और जीने लायक बनाने के लिए उस जमी पड़ी धूलि को, कचरे और तिनकों को हटाना होगा, बुहारी लगानी होगी, सफाई करनी होगी । तभी वह घर आनन्दपूर्वक रहने और जीने लायक बन सकेगा ।
जीवन का रूपान्तरण
आपने कभी किसी माली को पौधों की निराई-गुड़ाई करते देखा होगा । कोई पौधा केवल पानी देने से नहीं फलता, उसकी काँट-छाँट भी करनी पड़ती है; पौधे में जो कमी आ चुकी है उसे तोड़ना और उखाड़ना पड़ता है । जीवन में आई त्रुटियों को भी तो हटाना जरूरी है, ताकि हृदय - मस्तिष्क और चेतना के पौधे ठीक से फल-फूल सके । पौधे के लिए जरूरी है कि वह हर तूफानी थपेड़ें को सहने में समर्थ हो । ऐसे ही मनुष्य को भी उस सुख-शांति और आनंदमय जीवन का मालिक होना चाहिए, जिसे मानवीय मन के विकार और दुःख विचलित और बाधित न कर सकें ।
लगे बुहारी अन्तर्-घर में
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