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________________ माह में एक विशाल ग्रंथ के लेखक बन सकते हैं । सहजतया प्रतिवर्ष आप ज्ञान के दो पुष्प इस धरती के कल्याण के लिए समर्पित कर सकते हैं । निश्चय ही आपका प्रमाद, आपके स्वाध्याय और ज्ञान का बाधक बन रहा है। आप अपने जीवन से प्रमाद को वैसे ही दूर हटा दें, जैसे जूतों के पुराने हो जाने पर उन्हें घर के बाहर फैंक दिया जाता है । जीवन की हर सुबह ईश्वर की प्रार्थना करना, स्वयं के लिए सौभाग्यकारी है, पर इससे भी बड़ी हकीकत यह है कि स्वाध्याय करना उससे भी ज्यादा कल्याणकारी है । प्रार्थना से निपजा स्वाध्याय और स्वाध्याय से निष्पन्न प्रार्थना- दोनों का स्वाद, सुवास और प्रकाश अनेरा ही होता है । तब दोनों अलग नहीं होते, एक ही सिक्के के अभिन्न पहलू हो जाते हैं ४८ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ऐसे जिएँ www.jainelibrary.org
SR No.003895
Book TitleAise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2001
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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