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________________ यह बात ठीक है कि आज की शिक्षा-शैली का स्वरूप बदल चुका है; बच्चों पर किताबों का इतना भार आ चुका है कि वह उनकी उम्र के अनुसार उनके लिए दबाव और तनाव का ही कारण बनता है । आजकल हम दो-ढाई-तीन वर्ष की उम्र में ही बच्चे को स्कूल भेजना शुरू कर देते हैं। हमारे इस पुरुषार्थ से बच्चे में बहुत जल्दी ही स्कूल जाने की आदत पड़ जाती है, लेकिन इसका सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि बचपन में जो घरेलू संस्कार पड़ने चाहिए, उनका बीजारोपण नहीं हो पाता । बच्चा केवल किताबी ज्ञान में ही उलझ जाता है । न ही उसको नैसर्गिक गुणों के विकास का आधार मिल पाता है और न ही उदात्त गुणों के परिसंस्कार का वातावरण । शिक्षा वही, जो संस्कारित करे ___ आज हमने शिक्षा को नये युग की नई रूढ़ि और नई फैशन बना डाला है । हम बच्चे को संस्कारशील विद्यालय में दाखिला दिलाने की बजाय होड़ाहोड़ में ऐसे विद्यालयों में भेजना पसंद करते हैं जहाँ जाकर बच्चा न इधर का रहता है, न उधर का। शिक्षा तो स्वयं एक सेवा है । आज तो शिक्षा और चिकित्सालय विशुद्ध व्यावसायिक प्रतिष्ठान हो गये हैं । जो स्कूल जितना महंगा, उसका ‘स्तर' उतना ही ऊँचा ! अब ऐसी शिक्षा का हम क्या करें जिससे उठने-बैठने और खाने-पीने का भी विवेक न रहे । इस हाय-हैलो के जमाने में माता-पिता और बडों को प्रणाम करने में भी संकोच और शर्म महसूस होती है । भला जिसे अपने माता-पिता को धोक लगाने में भी शर्म आती है, वह उनके वक्त-बेवक्त में क्या तो काम आएगा और क्या सेवा करेगा ! ऐसी शिक्षा के द्वारा व्यक्ति का विकास तो जरूर होगा, लेकिन उसकी स्वार्थ-चेतना का ही। आखिर व्यक्ति के अपने सौम्य स्वरूप का भी महत्व होता है। सबके साथ मिलने-बैठने का, एक-दूसरे के सुख-दुःख में काम आने का, मर्यादा और शालीनता का अपना अर्थ और महत्व है, उसकी अपनी आवश्यकता है, उसका अपना परिणाम है । हम चाहे शिक्षा लें अथवा दें, शिक्षा का लक्ष्य पेट भरने तक सीमित न रहे । शिक्षा तो व्यक्तित्व-विकास का आधार है । शिक्षा को हमें नित्य-नवीन विकास के पहलूओं से जोड़ना चाहिए और ज्ञान के नित्य-नवीन-नायाब पहलूओं का उपयोग करना चाहिए। स्वीकारें, स्वाध्याय का संकल्प हम स्वाध्याय अवश्य करें । हम केवल पठन और अध्ययन तक ही सीमित न रहें, वरन् ज्ञान के पैमानों को थोड़ा विस्तार दें । हम चिंतन-मनन और अनुसंधान भी ४६ ऐसे जिएँ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003895
Book TitleAise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2001
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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