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________________ पड़ेगी । समयबद्धता और प्रामाणिकता—केवल इन दो सूत्रों के आधार पर भारत का भाग्य बदला जा सकता है, इसका भविष्य स्वर्णिम बनाया जा सकता है। यह कितनी बड़ी विडंबना है कि हम समय से नहीं चलते । रात में सोने की बात को लिया जाए, तो देर से सोते हैं और सुबह उठने की बात लें, तो समय गुजर जाने के बाद उठते हैं । लेट-लतीफी का प्रचलन ऐसा चल पड़ा है कि व्यक्ति अपने दफ्तर में भी देर से पहुँचता है, कोई मीटिंग हो, तो उसमें भी समय की पाबंदी नहीं होती, समारोह चाहे अच्छे से अच्छा क्यों न हो, समय पर शुरू नहीं होता। शादी में जाओ, तो बारात देर, स्टेशन जाओ, तो ट्रेन लेट । और तो और, हवाई जहाज भी लेट । यानी समय की कोई सही व्यवस्था ही नहीं । ध्यान रखें, जहाँ समय की पालना नहीं, उसके जीवन में कोई व्यवस्था नहीं होती। भला जो समय को नहीं निभा सकता, वह अपने धर्म और वचन को क्या निभाएगा! आज का कार्य आज हो ___ तुम समय के साथ चलो, समय तुम्हारा साथ निभाएगा; तुम समय की व्यवस्थाओं पर ध्यान दो, समय तुम्हारी व्यवस्थाओं पर ध्यान देगा; तुम समय का उपयोग करो, समय तुम्हारा उपयोग करवाएगा। समय मेरा मित्र है, मैं समय का मित्र हूँ। मैं और समय—दोनों अलग-अलग नहीं हैं । कायाएँ दोनों की अलग होंगी, प्राण दोनों के एक हैं । मैं समय की धार हूँ, समय मेरा सूत्रधार । समय की प्रेरणा है : समय की नजाकत पहचानो। अपने किसी काम को कल पर मत टालो । जो अपने काम को कल पर टालते हैं, वे खुद टलते चले जाते हैं, जो अपने काम को आज संपादित करते हैं, वे समय का वर्तमान बन जाते हैं । हम न केवल आज के कार्य को आज करें, वरन कल के कार्य को भी आज कर डालना संभावित हो, तो स्वयं की ओर से प्रयत्नशील रहने में कोई कमी न रहने दें। कल का काम आज हो और आज का काम अभी इसे जीवन की सफलता का मूल मंत्र मानें । जो आज का उपयोग कर रहे हैं, विश्वास है वे कल का भी उपयोग करेंगे । जो आज ही अलसाये हैं, वे कल तरोताजा हो जाएँगे, उम्मीद नहीं है । हर दिन जीवन की यात्रा का एक दिन कम होता है । करने के लिए बहुत कुछ है । तुमसे कुछ करवाने के लिए ही समय ने तुम्हारा सृजन किया है। आओ, हम धरती को स्वर्णिम बनाएँ । शिखर पर बैठा समय निरंतर हमें देख रहा है । वह देख रहा है सृष्टि के लिए कौन उपयोगी है और कौन आलसी-अवांछित । पहचानें, समय की नजाकत ३५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003895
Book TitleAise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2001
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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