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________________ शिष्टता से बढ़कर संजीवन नहीं सदाचार तो अमृत है । सादगी और सदाचार से बढ़कर कोई पुण्य नहीं और प्रपंच तथा दुराचार से बढ़कर कोई पाप नहीं । शिष्टता से बढ़कर कोई संजीवन नहीं और अशिष्टता से बढ़कर कोई मृत्यु नहीं । दूसरों के द्वारा अशिष्ट और ओछा व्यवहार किए जाने पर भी स्वयं पर आत्म-नियन्त्रण रखना और अपनी ओर से सदा सबके प्रति सरलता, प्रसन्नता और मधुरता से पेश आना जीवन की आदर्श साधना है । संस्कार व्यक्ति के आचार-व्यवहार को प्रभावित करते हैं । व्यक्ति के जैसे संस्कार होंगे, उसका जीना मरना भी वैसा ही होगा। किसी ने कहा, 'तुमने चोरी की है, तो उसका दंड तो मिलेगा ही ।' जवाब मिला, 'दंड केवल मुझे ही नहीं, मेरे अभिभावकों को भी दिया जाए, जिन्होंने मेरी चोरी की आदत को जानते हुए भी मुझे इससे दूर रखने का प्रयत्न नहीं किया ।' एक महानुभाव ने किसी बच्ची से पूछा, 'तुम सबके साथ इतनी शालीनता और सम्मान से कैसे पेश आते हो ?' जवाब मिला, 'इसमें कोई विशेष बात नहीं है । मेरे घर में सभी एक-दूसरे के साथ ऐसे ही पेश आते हैं ।' घर-परिवार का सीधा असर माता-पिता और घर-परिवार के सदस्यों के बोल-बरताव का बच्चे पर सीधा असर पड़ता है । अपनी संतान को श्रेष्ठ संस्कारों का स्वामी बनाने के लिए हमें स्वयं को पहले उन्हें आत्मसात करना होगा । हमें घर का वातावरण ही ऐसा रखना चाहिए कि घर के सभी लोग अनायास ही सादगी, स्वच्छता और शालीनता को आचरित करते रहें । एक संस्कारित बालक का निर्माण सौ विद्यालयों को बनाने के समान है । 1 बालक का जीवन तो उस गमले के समान है, जिसमें जैसे विचार, व्यवहार और संस्कार के बीज बो दिए जाएँगे, पौधा और फल-फूल वैसे ही विकसित होंगे । माता-पिता को अपनी संतान के प्रति एक जीवन - माली और जीवन- गुरु का दायित्व वहन करना चाहिए । जीवन को हम उस बर्तन की तरह जानें, जिस पर जो चिह्न बना दिया जाता है, वह सदा बना हुआ रहता है। फिर क्यों न हम जीवन में वे मधुर संस्कार और आदर्श स्वीकार करें, जिसका प्रभाव हमारे जीवन-भर बना रहे । २६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ऐसे जिएँ www.jainelibrary.org
SR No.003895
Book TitleAise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2001
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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