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________________ व्यवहार हमारे शिष्ट व्यक्तित्व को उजागर करता है, वहीं अशिष्ट व्यवहार हमारे अशिष्ट व्यक्तित्व को । वह व्यक्ति पढ़ा-लिखा होते हुए भी अपरिपक्व ही कहलाएगा, जो औरों के साथ शालीनता से पेश नहीं आता । एम.ए. की उपाधि प्राप्त कर लेने भर से व्यक्ति एम.ए.एन. (मैन/मनुष्य) का गौरव हासिल नहीं कर सकता। नैतिक और व्यावहारिक शिष्टता ही व्यक्ति को उसकी विशिष्टता और यशस्विता प्रदान करती है कुलीनता की पहचान आचार-व्यवहार से ___ सबके साथ शिष्ट और विनम्र व्यवहार करना ही व्यक्ति की शालीनता है । यहाँ तक कि हमें अपने कर्मचारी और पालतू कुत्ते के सामने भी सलीके से पेश आना चाहिए। स्वयं के जीवन को सुव्यवस्थित और अनुशासित ढंग से जीना,वहीं औरों के मान-सम्मान और शिष्टाचार का ध्यान रखना व्यक्ति की विशेषता है । पुष्प वही ग्राह्य होता है, जो पुष्पित और सुवासित होता है। हमारी ओर से ऐसा कोई व्यवहार नहीं होना चाहिए, जिससे किसी के हृदय को आघात पहुँचे । हमारी कुलीनता की पहचान हमारे आचार-व्यवहार से ही होती है। व्यक्ति जन्म से नहीं, अपने कर्म, गुण और व्यवहार से ही स्वयं को और अपने कुल को गौरवान्वित करता है। जीवन में सफलता पाने का पहला गुर ही सबके साथ शालीन, विनम्र और मधुर व्यवहार करना है। किसी के द्वारा अशिष्ट बरताव किए जाने पर भी स्वयं पर संयम रखना और अपनी शिष्टता तथा शालीनता को बरकरार रखना जीवन की सबसे बड़ी सफलताओं में एक है। क्या हम इस बात पर ध्यान देंगे कि हमारी ओर से होने वाला वाणी-व्यवहार हमें सम्मानित कर रहा है या उपेक्षित? कहीं ऐसा तो नहीं कि हम अमर्यादित बोलते हों? आत्म-प्रशंसा और परनिंदा में रस लेते हों ! अपशब्द या व्यंग्य का उपयोग करते हों ! मिथ्या अहं के चलते औरों की उपेक्षा कर बैठते हों या क्रोध के आवेश में अपनी और दूसरे की मर्यादाओं को खंडित कर बैठते हों ! अथवा शरीर के द्वारा विकृत मुख-मुद्रा, आँख मारना, घूरना, छेड़खानी करना, दाँत किटकिटाना जैसी दुर्वृत्तियों को दुहराते हों ! व्यवहार चाहे वाणीगत हो या चेष्टागत अथवा कर्मजन्य, उस पर संयम, सदाचार और सौम्यता का अवलेह अवश्य होना चाहिए। पेश आएँ शालीनता से २५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003895
Book TitleAise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2001
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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