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________________ हर कार्य अव्यवस्थित होता है। योजनाबद्ध और व्यवस्थित रूप से कार्यों को संपादित करने वाला सात दिन के कार्यों को एक दिन में पूरा कर सकता है । जिसके जीवन में कोई व्यवस्था नहीं, वह एक दिन के कार्यों को सात दिन में निपटा सके, संभव नहीं। हर कृत्य ईश्वर की पूजा ____व्यक्ति अपने किसी भी कृत्य को छोटा न समझे । वह अपने हर कृत्य को अपने लिए ईश्वर की पूजा माने, आनंद-भाव से कार्य करोगे तो वह कार्य आपके लिए मुक्ति का प्रथम द्वार बन जाएगा और रोते-झींकते बोझिल मन से कार्य करोगे तो वह कार्य ही हमारे लिए हमारे जीवन के बंधन की बेड़ी बन जाएगा। हम अपने कार्यों को इस तरह से संपादित करें कि हमारा हर कर्म परमात्मा की प्रार्थना और आराधना हो जाए, हमारे कृत्य हमारा कर्मयोग बन जाए । कार्य चाहे व्यवसाय का हो या घर-परिवार का, समाज का हो या राष्ट्र का-हम अपने हर कृत्य को अपनी ओर से समर्पित किया जाने वाला पुष्प ही समझें और उसी रूप में उसे संपादित करें । सांझ को जब घर लौटें, तो अपने घर के छोटे-बड़े हर सदस्य से प्रेमपूर्वक मिलें। संभव है हम दिन भर के कार्यकलापों से थके हुए घर लौटे हों, पर निश्चय ही घर में पीछे रहने वाले सदस्य हमारे लिए प्रतिपल चिंतित रहे हैं, हमारा मंगल चाहते रहे हैं और हमारी कुशल वापसी की प्रार्थना करते रहे हैं। हम अपनी बोझिलता का गुस्सा कभी घर के सदस्यों पर न निकालें, क्योंकि वे हमारे हितैषी, हमारे सुख-दुःख के सहभागी और हमारे लिए प्रतीक्षारत रहे हैं । परिवार के प्रति अपने दायित्वों को निभाकर हम धन्य बनेंगे और परिवार का प्रेम पाकर भी। ध्यान रखें, परिवार को हमारी सख्त जरूरत है। हम परिवार में परिवार के लिए ऐसे जीएँ कि स्वयं परमात्मा की प्रतिमा कहला सकें। संध्याकाल का जब भोजन ग्रहण करें तो इतनी सजगता अवश्य रखें कि आपके सोने में और भोजन में इतना अंतराल अवश्य हो कि भोजन को पचने में दिक्कत न आए । अगर रात को काफी देर से सोते हैं, तो इस आदत को भी सुधारें । समय पर सोएँ और समय पर जागें; यथासमय ही भोजन करें और यथासमय ही अपने कार्यों को संपन्न करें । रात को सोएँ, तो ईश्वर को अपना जीवन समर्पित कर दें और सुबह उठें तो इस नये दिन की सौगात के लिए ईश्वर के प्रति कृतज्ञता से भर उठे । आप सचमुच प्रमुदित रहेंगे, हमारा जीवन हमारे लिए वरदान होगा, हम अपने लिए और दुनिया के लिए कुछ कर गुजर सकेंगे। स्वस्थ मन से करें दिन की शुरुआत २३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003895
Book TitleAise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2001
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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