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________________ में गुस्सा कर बैठे, तो यह दोनों का ही बुद्धपन रहा । उस गुस्से से दोनों में दूरी ही बढ़ेगी। भला गुस्सा किसी के हृदय में कभी सौहार्दपूर्ण जगह बना पाया है ? क्रोध कोई सनातन धर्म नहीं है । यह पानी का बुलबुला या गरम हवा का झौंका भर है। उसके प्रेत-स्वरूप की उम्र कितनी ! यदि हमने किसी के गुस्से को विवेक और धीरज से पचा लिया, तो अवश्य ही इसका शुभ परिणाम आने की पूरी उम्मीद है । वह गुस्सैल व्यक्ति अपने क्रोध के शांत होने पर प्रायश्चित और आत्मग्लानि से भर उठेगा । उसे अपना कद छोटा महसूस होगा और वह अपनी अगली बातचीत में इस तरह से भाव और भाषा का उपयोग करेगा कि उसे सही में ही स्वयं के दुर्व्यवहार की पीड़ा हुई । उससे वह गलती दुबारा न हो, ऐसे संकल्प का बीज भी वह अपने आप में बो लिये जाने का भाव ग्रहण करेगा। अंधेरे का रोना न रोएँ हमारे द्वारा गलत न हो, इसके लिए हम सजग रहें । जो गलत हुआ उसके परिणामों को भुगतने का साहस रखें । गलती या बदनियती के प्रति सजग-सावचेत रहकर ही हम उससे बच सकते हैं । हो चुकी गलती के लिए रोते न फिरें । स्वयं की सोच और बुद्धि को सकारात्मक और रचनात्मक बनाने की कोशिश करें । अंधेरे का रोना रोने से जीवन में प्रकाश की किरण नहीं उतरती, लेकिन सद्गुणों का प्रकाश आत्मसात हो जाए, तो दुर्गुणों का तमस् अपने आप नेस्तनाबूद हो जाता है। अंधकार को दूर करने का सीधा-सा सूत्र है—जीवन में दो दीप जलाएँ । हम नकारात्मक सोच और नकारात्मक दृष्टि से मुक्त हों । जीवन में चाहे सोच हो या स्वप्न, सब कुछ सकारात्मक बने । हम यह न देखें कि गुलाब में भी काँटें हैं, वरन् सोच और दृष्टि यह रहे कि काँटों में भी गुलाब है । गिलास को आधा खाली तो हर कोई कह देगा, हमारी विशालता और उदारता इसमें है कि हम उसके भरे हुए पहलू पर ध्यान दें, और प्रेम और मुस्कान से कहें-गिलास आधा भरा हुआ है । हमारी सोच और जीने की शैली में ही छिपा है जीवन की हर सफलता का राज । बस, आवश्यकता केवल इस बात की है कि वह सकारात्मक हो । वस्तुतः यही है जीने की कला और यही है उसका गुर । ...ऐसे जिएँ ०४ Jain Sacationa International For Personal and Private Use Only
SR No.003895
Book TitleAise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2001
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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