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________________ मिल रहा है, तो चिंतित न हों । धीरज रखें, आज जो गलत मिल रहा है, तो वह हमारे किसी कल का परिणाम है । विश्वास रखें, निश्चित रहें; प्रकृति के कायदे-कानून नहीं बदलते । वह हमें उसका अच्छा परिणाम जरूर लौटाएगी, जो हम आज अच्छा कर रहे हैं । हमारा हर कृत्य आने वाले कल की सौगात है । प्रकृति हमें वही सौगात और उपहार लौटाती है, जैसा-जिस भाव से हमने उसे समर्पित किया है। __सौहार्द और प्रेम के बदले में आत्मीयता और समर्पण ही लौटकर आते हैं, इसलिए हमारी ओर से किसी पर की जाने वाली दया और करुणा, वास्तव में अपने आप पर की जाने वाली दया और करुणा है । किसी अन्य को हानि या क्षति पहुँचाना, स्वयं के लिए ही आत्मघातक है । जीव-दया आत्मदया है और जीव का वध, आत्मवध । आपने ये दो प्यारी पंक्तियाँ सुनी होंगी देते गाली एक हैं, उल्टे गाली अनेक । जो तू गाली दे नहीं, तो रहे एक की एक ॥ बड़ी विचित्र बात है कि गणित में एक और एक दो होते हैं, पर गालियों का गणित-शास्त्र एक और एक को मिलाकर कई गुना कर देता है । गालियों के मामले में जोड़ें कम होती हैं, गुणनफल ही ज्यादा होते हैं । कहीं आप यह प्रयोग करके देख मत लीजिएगा, लेने के देने पड़ जाएँगे। बातें, बातों तक सीमित नहीं रहतीं, वे आगे बढ़ जाती हैं । यह आप भलीभांति जानते हैं कि बातें जब आगे बढ़ती हैं तो वे बातों तक ही सीमित रहती है या लातों तक; इसका कोई तय हिसाब नहीं है । परिणामों का पूर्वबोध रहे जीवन के प्रति सजग न रहने के कारण ही अथवा अपने कृत्य के परिणामों का पूर्वबोध न होने की वजह से ही व्यक्ति गलती करता है । वह न केवल गलती करता है, वरन् उसी गलती को दोहराता रहता है, गलती का पिष्ट-पेषण होता रहता है। व्यक्ति हर कार्य को करने से पहले या हर वाक्य को बोलने से पहले किंचित् यह बोध या सजगता धारण कर ले कि मैं जो कर या कह रहा हूँ, वह किसी रूप में अमंगलकारी या किसी के लिए अनिष्टकारी तो नहीं है ? हमारा हर कृत्य और वाक्य स्पष्ट, सरल और बोधगम्य होना चाहिए, किसी व्यंग्य या रहस्यमय पहेली की तरह नहीं । व्यक्ति को ऋजु और निर्मल होना चाहिए, अंधेरी गलियों जैसा नहीं। अच्छाई वापसी का रास्ता ढूँढ़ लेती है। हमारा अच्छा और भला किया कभी ऐसे जिएँ १६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003895
Book TitleAise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2001
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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