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________________ आप में यह अपरिग्रह-धर्म का पालन है । भौतिक सुखों का कोई अंत नहीं है । ये सब तो वे चापलूस शत्रु हैं, जो दिन-रात हमारा खून चूसते रहते हैं। हम लालसाओं में न उलझें, जीवन के आवश्यक कार्यों और कर्तव्यों का पालन करें । सभी कार्य और कर्त्तव्य जीवन-पथ के देवदूत होते हैं । कर्त्तव्य को कर्त्तव्य की भावना से निष्ठापूर्वक संपादित करना देवों की ही अर्चना है। आप सबल हैं, समर्थ हैं, सौभाग्यशाली हैं, इसीलिए आपके पास जरूरत से ज्यादा अर्जित होता है । जो भोगा सो पूरा हुआ, जो बचा सो लुटा दिया । अरे, तुम दाता बनो। तुम्हारे हाथ सदा लुटाते रहें । देकर खुश बनो । जो भोगा सो मिट गया, जो बाँटा सो बढ़ गया। जो छिप-छिपकर खाता है, वह पाखाने तक पहुँच जाता है और जो बाँट-बाँटकर स्वीकार करता है, उसके लिए भोजन प्रसाद बन जाता है। हम अपरिग्रह/असंग्रह को अपने जीवन में जीएँ और जो कुछ भी हमारे पास अतिरिक्त आता जाए, उसे निःस्वार्थ आनंद भाव से जगत की व्यवस्था में अपनी ओर से समर्पित कर दें । नाव पर उतना ही भार वहन करें कि वह हमें किनारा दिखा सके। अतिरिक्त चढ़ाया गया भार नाव को मझधार में ही डुबोता है । न गिला, न गुमान : सदाबहार प्रसन्नता अपनी ओर से भरसक कोशिश रहे कि सदा सत्यवाणी बोलें और सत्य का समर्थन करें । हर व्यक्ति और हर परिस्थिति के प्रति समान दृष्टि रखें, समदर्शी रहें । निंदा-प्रशंसा, अमीरी-गरीबी, हानि-लाभ दोनों ही स्थितियों में समान रहें । यह कुदरत की व्यवस्था है कि कोई भी परिस्थिति एक जैसी नहीं रहती । अगर अनुकूल है तो वह भी बदल जाती है और प्रतिकूल है तो वह भी । जब परिवर्तन ही कुदरत की आत्मा है, तो अनुकूलता पर गुमान कैसा और प्रतिकूलता पर गिला कैसा ! तकलीफ को पाकर खिन्न न हों। विश्वास रखो। ईश्वर के घर में अंधेरा नही है । जीवन में एक द्वार बंद होता है, तो दूसरा खुल भी जाया करता है। यदि कोई हमारे साथ गलत व्यवहार कर दे, हमारी उपेक्षा कर डाले, तो दुःखी और क्रोधित होने की बजाय उसके प्रति अपने हृदय में क्षमा और करुणा के मेघ उमड़ने दें, ताकि हमारा चित्त तो शीतल रहे ही, संभव है हमारे कारण अगले का क्रोध भी शीतल हो जाए। - हम अच्छे लोगों की संगत में रहें, अच्छे लोगों को अपनी संगत में रखें, जिससे कि हमारा ज्ञान और विवेक बना रहें । सदा सौम्य और प्रसन्न रहें । विपरीत परिस्थितियों को अपनी प्रसन्नता छीनने का अधिकार न दें। प्रतिकूल पहलुओं से सामना हो जाने १२ ऐसे जिएँ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003895
Book TitleAise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2001
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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