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________________ है । साधक पहले श्वास के स्थूल रूप को, फिर सूक्ष्म स्वरूप को और तत्पश्चात् उसकी सूक्ष्म संवेदना को जाने, अनुभव करे । __ दूसरा चरण: देह-दर्शन : संवेदना-बोध समय : २० मिनट __श्वास की सूक्ष्म संवेदना पर सजगता सधने के बाद शरीर में निहित सूक्ष्म शरीर का, शरीर के अन्तर-प्रदेशों का निरीक्षण करें । साधक अन्तर्दृष्टिपर्वक कंठ-प्रदेश की ओर निहारे । कंठ-प्रदेश के स्थूल रूप को, उसमें व्याप्त अणु-परमाणु, स्कंध, संवेदना, अहसास के प्रति सजग हों; वहाँ टिकें, रुकें तब तक, जब तक वहाँ के अहसासों से उपरत न हो जाएँ । स्वयं की सजगता और चेतना की धारा को कंठप्रदेश की ओर बना हुआ रहने दें । हमारी अन्तर्दृष्टि कंठप्रदेश में व्याप्त सूक्ष्म तत्त्व की ओर हो। अन्तर्यात्रा के इस क्रम में साधक कंठ से हृदय प्रदेश की ओर उतरे, वहाँ रुके। हृदय की धड़कन, उसकी गति पर सजग हो, उसकी संवेदनशीलता पर जागरूक हो। स्वयं की अन्तर्केन्द्रित चेतना को हृदय की ओर प्रवाहित होने दे । चित्त और बुद्धि की धारा पूरी तरह हृदय की ओर सजग/तन्मय । साधक मात्र स्वयं की शरण में रहे, शेष सब अशरण-रूप । साधक अपनी सजगता को हृदय के हर पुद्गल-परमाणु और स्कंध के सूक्ष्म स्वरूप पर बना रहने दे, उस पर जागे। साधक अपनी अन्तर्-सजगता का विस्तार हाथों की ओर होने दे । हाथ के जिस भाग में वेदना-संवेदना हो, या प्राण-ऊर्जा का विस्तार हो, उसे जाने; उस पर टिकें । पहले से व्याप्त दूषित तत्त्वों के निवारण के लिए स्वयं की प्राणधारा और चैतन्य-धारा को हाथों के अंतिम छोर तक विस्तृत होने दे । साधक सूक्ष्म-से-सूक्ष्म संवेदना पर जागरूक हो । हाथों की स्थिति सहज-स्वस्थ-सौम्य हो जाने पर साधक हृदय के मध्य क्षेत्र में अपनी सजगता को केंद्रित होने दे । वहाँ प्रवहमान और संवेदन के सूक्ष्म तत्त्व को पहचाने । हृदय का हर दूषण, प्रदूषण, विकार साधक की ध्यान-चेतना से स्वतः निर्मल रूपान्तरित होगा। हृदय से साधक उदर-भाग की ओर उतरे । आंतों में पड़े मल-मूत्र पर साधक जागे । यही है वह तत्त्व, जिससे यह स्थूल काया पोषित होती है । गंदगी, मांस, मिट्टी से भरी इस देह के प्रति व्यक्ति की मूर्छा ही उसका मिथ्यात्व है । शरीर के विकार भी इसी मल-मूत्र से पोषित होते हैं । अच्छे से अच्छा खाया-पीया सब कुछ इन्हीं आंतों में मल-मूत्र १०० ऐसे जिएँ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003895
Book TitleAise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2001
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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