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________________ चरण में प्रति श्वास पर सजग रहें, श्वास के स्वरूप को देखें, अनुभव करें । श्वास के इस स्थूल स्वरूप के प्रति चित्त की सजगता बरकरार रहे । दीर्घ श्वास-प्रश्वास का यह चरण करीब पाँच मिनट तक जारी रहे । मंद श्वास-श्वास के प्रति चित्त की सजगता और गहरी होती जाए । श्वास की गति और मंद....मंद से मंदतर । ध्यान की चेतना नासाग्र पर । श्वास की गति ज्यों-ज्यों धीमी होगी, चित्त की धारा ध्यान के अनुकूल होती जाएगी । श्वास लेते-छोड़ते समय यह बोध रहे.... श्वास मंद चल रही है....मन शांत... विचार शांत.... श्वास की गति मंद...मंद.... । श्वासोच्छवास पर चित्त की एकाग्रता-लगभग पाँच मिनट तक। सहज श्वास-श्वास और चित्त के बीच सहज संतुलन और तन्मयता का आभामंडल खिल जाने पर हम प्रयासमुक्त हो जाएँ, बोध और प्रज्ञापूर्वक श्वास की सहज स्थिति का निरीक्षण हो । शरीर से न कुछ करें, वाणी से न कुछ बोलें, मन से न कुछ सो....केवल देखें....श्वास को देखते रहें...श्वास के आवागमन को देखते रहें...श्वास के उदय-व्यय को देखते रहें....मात्र श्वास-दर्शन....श्वास की अनुप्रेक्षा-अनुपश्यना। चित्त की सजगता श्वास पर....प्रतिपल-प्रतिक्षण श्वास का अन्तर्बोध.... । साधक केवल द्रष्टा रहे—श्वास के उदय होते रूप पर, विनष्ट होते रूप पर । उदय-व्यय के इस क्रम में साधक देख रहा है श्वास को, देखने वाले को; जान रहा है श्वास को, जानने वाले को । साक्षी-ध्यान का यह चरण आनापान है अर्थात् आती-जाती श्वास को अन्तर्दृष्टिपूर्वक देखना । श्वास की सहज स्थिति पर लगभग दस मिनट तक एकाग्रता, सजगता और अन्तर्-बोध बना हुआ रहे। इस दौरान चित्त में जो कोई विकल्प-विचार-विकार उठे, तो साधक उसे केवल देखे, सिर्फ साक्षी बनकर, तटस्थ बनकर । साधक सहज संवर-भाव (द्रष्टा-भाव) रखे, चेतन-अचेतन मन में जमे संस्कारों, विकारों और कर्मों का आस्रव (आगमन) होना स्वाभाविक है । साधक की सजगता ही संवर का काम करेगी और उसकी अन्तर्दृष्टि ही निर्जरा का । साधक तो अपने हर कर्मास्रव और मन की पर्याय का साक्षी भर रहे, जैसे सरोवर के किनारे बैठकर पानी की लहरों को अपने से अलग देखा जाता है, ऐसे ही साधक अपनी सहज श्वास को, विचार हो, तो विचार को, कर्म-संस्कार हो, तो उसको, बस देखे; बोध और प्रज्ञापूर्वक देखता रहे विचारों की पर्यायों के शान्त होने पर पुनः श्वास पर स्थिर हों। सहज सजगता और चित्त की एकाग्रता को साधने के लिए ही यह पहला चरण जीवन की चिकित्सा ध्यान के द्वारा ९९ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003895
Book TitleAise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2001
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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