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मुक्ति : प्राणिमात्र का अधिकार
कुछ मित्र समुद्र किनारे घूमने गए। उन्होंने खूब शराब पी रखी थी। पूर्णिमा का चाँद चमक रहा था। समुद्र अपनी रवानी पर था। समुद्र की फेनिल लहरों ने उन युवकों को आकर्षित किया। उन्होंने नौका-विहार करने की ठानी। सभी शराब के नशे में थे। उन्होंने देखा तट पर नाव खड़ी है, उसमें पतवार भी है। वे सभी नाव में जाकर बैठ गए और पतवार चलानी शुरू कर दी। बहुत मजा आ रहा था। शराब के नशे में वे एक दूसरे से आगे जा रहे हैं, ऐसा सोच रहे थे।
धीरे-धीरे चाँद ढलने लगा। इधर, भोर का उजियारा फैलने लगा। उधर, नशा भी उतरने लगा। युवकों ने देखा-वे किसी तट पर जा पहुंचे हैं। शराब का नशा उतर चुका था। सभी उस तट पर उतर गए, पर यह क्या, उन्होंने पाया कि जिस तट से उन्होंने यात्रा प्रारम्भ की थी वापस उसी तट पर उतरे। आपस में बातचीत करने लगे कि कमाल हो गया, हम रात भर पतवारें
खेते रहें, लम्बी यात्रा करके वापस उसी तट पर आ लगे, जहाँ से चले थे। कितने आश्चर्य की बात है, हम वहीं पहुँच गए, फिर रात भर पतवारें चलाने का लाभ क्या मिला ! एक ने चारों ओर नजर घुमाई। वह फिर जोर से ठहाका लगाकर हंस पड़ा। दूसरे दोस्तों ने इस हंसी का कारण पूछा। उसने कहा, यह ठीक ही है कि हमने रात भर यात्रा की, पतवारें भी खूब चलाईं, पर लंगर खोलना तो भूल ही गए।
क्या हमारी स्थिति भी इन शराबी दोस्तों की तरह नहीं है जो लंगर खोलना भूल गये थे, तो नाव आगे बढ़ती कैसे ? धर्म के नाम पर कुछ करते रहे, दान
72 : : महागुहा की चेतना
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