________________
जाए जिसके सहारे उनकी जीवन नैया पार हो जाए। कभी किसी को नसीब से ही सच्चा गुरु मिल पाता है जो जीवन के रहस्यों का भेदन कर पाए।
यह तन विष की बेल है, गुरु अमृत की खान। शीश कटे और गुरु मिले,
तो भी सस्ता जान।। देह तो विष की लता है, गुरु का अमृत इसे सींचे तो ही तन विष से निर्विष हो सकता है। गुरु तो अनमोल है, अमृत है। निश्चय ही, सद्गुरु का संयोग सौभाग्य से ही होता है। पत्नी, पुत्र, पैसा, पद, प्रतिष्ठा-ये सब आसान हैं, पर गुरु तो अगर शीश का बलिदान देकर भी मिल जाएं, तो भी कबीर तो कहते हैं कि मामला सस्ते में निपट गया।
होता यह है कि सद्गुरु हमारे सामने होते हैं और हम पहचान ही नहीं पाते। हमारी सांसारिक स्वार्थलिप्सा गुरुओं को भी उसमें घसीट लेती है। लेकिन याद रखना जो अपने आसपास संन्यास को भी संसार में तब्दील कर लेते हैं, उन गुरुओं से सावधान रहना । गुरु का कार्य है ज्योतिर्मय पथ प्रदान करना। तुम्हारा हाथ पकड़कर मझधार में ले जाना और किनारे का रास्ता दिखाना। गुरु तो प्रकाश-स्तम्भ है जिसकी रोशनी में जीवन का अंधकार तिरोहित होता है। वह अपने अनुभव की टेर सुनाता है और उस बंशीरव को सुन साधकों में अभीप्सा जाग्रत होती है। वह मनुष्य को सत्य की जानकारी दे रहा है, बोध और होश दे रहा है कि उसने जो पाया वह सभी पा सकते हैं। वह जीवन के श्रेयस्कर मार्ग की ओर इशारा है। वह तो चाँद की ओर अंगुली से इशारा करता है, फिर धीरे से अंगुली भी हटा लेता है कि तेरा चाँद से, सत्य से, परमात्मा से सीधा सम्बन्ध जुड़ जाए। ___'सद्गुरु बांटे रोशनी, दूर करे अंधेर-सद्गुरु उस अंधकार को दूर करता है जो मनुष्य के अन्तस् में फैला हुआ है। संसार में एक अंधकार तो बाहर है जो दिखाई देता है, लेकिन एक अंधकार भीतर है जो बाहर से नजर नहीं आता। सद्गुरु उस अंधकार को कैसे दूर किया जाए इसका ज्ञान देता है। अपनी ज्योति से तुम्हारी ज्योति भी जाग्रत करता है कि तुम भी प्रकाश से भर जाओ। अंधे-अभिशप्त गलियारे में भटकते मनुष्य को जो प्रकाश की किरण दिखा दे, उसी का नाम सद्गुरु है। वही तारक है, वही परम पुरुष है, वही तीर्थंकर है, जो अंधेरे में भटकती आत्मा को सन्मार्ग दिखा दे। बशर्ते तुम्हारे भीतर गुरु
सद्गुरु बांटे रोशनी : : 69
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org