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________________ सत्य कभी नहीं कहा जा सका। वह तो गूंगे केरी सर्करा हो गई। सत्य अव्यक्त ही रहा। जितना बोला गया उसकी रहस्यमयता और गहन हो गई। वह कह-कह कर भी नहीं कहा गया। मौन ही उसकी सर्वोत्तम अभिव्यक्ति है। ___ भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के साथ विचरते थे। सभी को जीवन के सत्य के बारे में जानने की उत्सुकता थी। भगवान प्रवचन करते, पर सत्य पर चर्चा नहीं करते। उनके शिष्य ध्यान-साधना भी करते, पर कोई उस स्थिति में नहीं पहुँचा था जहाँ सत्य का आविर्भाव हो सके। एक दिन भगवान ने स्वयं ही सत्य के संदर्भ में चर्चा शुरू की और शिष्यों से पूछना प्रारम्भ किया कि सत्य क्या है ? अस्तित्व का क्या रहस्य है ? अब तो शिष्यों की बन आई। लगे सब अपना-अपना ज्ञान बघारने। ऐसा होता है जब हमें किसी बात की जानकारी होती है तो हम अधिक से अधिक बोलकर अपना अहं तुष्ट करते हैं। बस, प्रभु एक-एक से पूछते रहे, जिसे जितनी जानकारी थी सबने उगल दी। लेकिन प्रश्न का निराकरण न हुआ। तब उनकी नजर कोने में बैठे हुए युवा भिक्षु पर गई। वह अभी-अभी संघ में शामिल हुआ था। सारे भिक्षु सीनियर थे, इसलिए वह चुप बैठा सबकी बातें सुन रहा था। संकोची स्वभाव का इतने लोगों के बीच क्या कहे ? तब प्रभु ने उसकी ओर देखकर आँखों ही आँखों में अपना प्रश्न दोहराया। वह युवा भिक्षु उठा और जाकर बुद्ध के चरण स्पर्श किए और वापस जाकर अपने स्थान पर बैठ गया। बुद्ध ने उसे गले लगा लिया और कहा, तुमने मुझे सही उत्तर दिया। सारे भिक्षक आश्चर्यचकित । एक शब्द इस नवागन्तुक ने कहा नहीं और भगवान कहते हैं उत्तर दे दिया। तब भगवान ने कहा मौन ही सत्य की अभिव्यक्ति है। जिसने जाना वह मौन हो गया। जब सत्य से साक्षात्कार हो जाता है तो वाणी में मौन और आनन्द-भाव अवतरित हो उठता है। आगे बढ़ें सद्गुरु बांटे रोशनी, दूर करे अंधेर, अंधों को आँखें मिले, अनुभव भरी सवेर । हर मनुष्य को जीवन में किसी-न-किसी गुरु की तलाश रहती है। चाहे वह नेता हो या अभिनेता, सेठ हो कि नौकर, सम्राट हो कि फकीर सब किसी गुरु की तलाश में रहते हैं जो उन्हें जीवन में राह दिखा सके। यह बात अलग है कि उनके उद्देश्य भिन्न होंगे, पर वे चाहते जरूर हैं कि उन्हें कोई गुरु मिल 68 : : महागुहा की चेतना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003894
Book TitleMahaguha ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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