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पहचानें, निज ब्रह्म को
मैंने सुना है, सूफी फकीर हसन राबिया के घर मेहमान था। सुबह उठा, कुटिया के बाहर आया और काबा की ओर नतमस्तक हो कहने लगा, 'हे खुदा ! कितने दिनों से मैं दरवाजा खटखटा रहा हूँ, तुम अपना वचन याद करो। तुमने सन्देश दिया था; तुम जब दरवाजा खटखटाओगे, मेरा द्वार खुल जायेगा। कहो, आखिर इस द्वार का उद्घाटन कैसे होगा।'
कई दिन गुजर गये, इसी तरह प्रार्थना करते हुए। राबिया रोज सुनती और भीतर ही भीतर कुछ गुनगुनाती। __ एक दिन फिर सुबह हसन वैसी ही प्रार्थना कर रहा था, हाथ फैले हुए थे, आँखें भीगी हुई थीं और जोर-जोर से कह रहा था-'हे परवरदिगार ! आप कब खोलेंगे अपने द्वार।।
राबिया जो पीछे ही खड़ी थी, हसन का सिर झिंझोड़ कर बोली, 'आखिर यह बकवास कब तक करोगे। तुम नासमझ हो, इसलिए द्वार खटखटा रहे हो। दरवाजे न तो कभी बन्द थे, न हैं। तुम खुले को खोलने की कोशिश करते हो। जलते को क्या जलाना ? तुम जिस ज्योति के दर्शन करना चाहते हो, वह तुम्हारे भीतर है। झाँको अपने हृदय में, वहाँ जो कुछ है, वही मुक्तिदायी
है।
अन्तदृष्टि और अन्तर्बोध जब तक उपलब्ध न हो जाए, साधक अपने जीवन में उस क्रांति-बीज का विस्फोट नहीं कर सकता, जिससे बीज में छिपा बरगद अपना अस्तित्व पा सके। बाहर के हजार-हजार सूरज तब फीके पड़ जाया करते हैं, जब भीतर का सूर्योदय हो जाता है। बाहर के हजार दीप जलाकर
52 : : महागुहा की चेतना
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