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काया और उसकी कोशिकाएँ, तब उसके भीतर औषधि व रसायन द्वारा प्राण फूंकने की जो प्रक्रिया की जाती है, उसका नाम है-कायाकल्प। यहाँ बात कर रहे हैं मन के कायाकल्प की। मन भी तनाव से टूटकर जीर्ण-शीर्ण हो जाता है। उस बूढ़े मन को परम चैतन्य तत्त्व के साथ तादात्म्य की भावना से फिर यौवनमय किया जा सकता है। अभी मैंने मन पर कुछ चर्चा की थी, उसका लक्ष्य मन का कायाकल्प ही है। मन की शक्ति तो जग जाती है, लेकिन द्वंद्व चेतना अगर बनी रह जाए, तो दुःख और उभरकर आता है। अर्न्तद्वंद्व चलने से चेतना में तनाव जगता है। तनाव से मानसिक विकार और रोग पैदा होते हैं। तनाव का धीरे-धीरे कटौती करना ही मन का कायाकल्प है। जैसे शरीर के कायाकल्प की अपनी विधि और प्रक्रिया है, और उसमें समय भी लगता है वैसी ही स्थिति मन के कायाकल्प की है। मन के कायाकल्प का परिणाम हमें यह मिलेगा कि हम मन की गति पर अंकुश लगा पायेंगे। समस्याओं का समाप्तीकरण होगा और दुःख-मुक्त जीवन जी पाएंगे।
मैंने कहा-मन का कायाकल्प, तो इसका अर्थ मन को दबाना नहीं है। निरर्थक उधेड़बुन से हटाकर उसे शांति की बैठक देना है। उन हलचलों और द्वंद्वों से मुक्त होना है, जो भीतर में अशांति के निमित्त पैदा करते हैं। निर्द्वन्द्व चेतना को उपलब्ध करना है, ताकि उजला पानी फिर धुंधला न हो जाए।
कहते हैं, भगवान बुद्ध विहार कर रहे थे। उनका परम आत्मीय शिष्य आनन्द भी उनके साथ था। प्यास लगने पर बुद्ध का संकेत पाकर आनन्द थोड़ी-ही दूर झरने से पानी लेने चला गया। देखा झरने के पास जाकर कि पानी धुंधला था। आनन्द ने देखा पानी पीने लायक नहीं है। बुद्ध को जाकर यह बात बताई। भगवान मौन रहे। थोड़ी देर बाद उन्होंने फिर आनन्द को झरने से पानी लाने का संकेत किया। आनन्द को तो पता था कि पानी धुंधला है, लेकिन भगवान का संकेत जो मिला, आनन्द टाल न पाया। वह जल लेने के लिए फिर रवाना हो गया। वह अनमने भाव से झरने के पास पहुँचा, लेकिन देखा झरने का पानी बिल्कुल साफ! आनन्द पानी लेकर वापस आया। प्रभु से पूछा-भगवन, मैं थोड़ी देर पहले गया, तो पानी धुंधला था, लेकिन अब साफ है। वे मुस्कराए और कहने लगे-झरने का स्वभाव तो मनुष्य के मन की तरह है। तुम पानी लेने गये थे, उससे कुछ ही क्षण पहले एक बैलगाड़ी उधर से गुजरी और पानी में हलचल हुई। दबी हुई मिट्टी पानी में घुलमिल गई और थोड़ी ही देर में हलचल शांत हो गई, तो पानी पुनः साफस्वच्छ हो गया।
44 : : महागुहा की चेतना
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