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काया मुरली बाँस की
जापान में कई सौ वर्ष पूर्व एक झेन फकीर ने विराट आश्रम बनवाया। आश्रम इतना सुन्दर था कि पूरे जापान में उसकी चर्चा थी। क्योंकि वैसा सुन्दर आश्रम दूसरा न था। सम्राट ने भी उस आश्रम के बारे में सुना। उसने सोचा जब आश्रम इतना खूबसूरत है तो अवश्य ही उसे देखना चाहिए। एक दिन सम्राट आश्रम में पहुँच गया। फकीर के शिष्यों ने सम्राट का स्वागत किया। सम्राट को साथ लेकर फकीर ने आश्रम के एक-एक भवन का, एक-एक कक्ष का दिग्दर्शन करवाया। उन्हें बताया गया कि आगन्तुकों के लिए अलग व्यवस्था है, रोगियों के लिए चिकित्सालय है, यहाँ पुस्तकालय है, यह भोजन कक्ष है, यह विश्रामालय है। और भी जो-जो वहाँ था, सबकी जानकारी सम्राट को दी गई। फकीर जब सम्राट को यह सब बता रहे थे तो सम्राट की नजर वहाँ बीचो-बीच बने हुए एक विशाल कक्ष पर ठहर गई। सम्राट को उसके बारे में जानने की उत्सुकता हुई। बीच में एक-दो बार फकीर से पूछा भी, लेकिन फकीर जैसे सम्राट की बात सुन ही नहीं पा रहा था। वह तो अपने ही ढंग से आश्रम की व्यवस्थाओं का, भवनों का, उद्यानों का, झरनों का परिचय कराये चला जा रहा था। अब सम्राट बार-बार पूछने लगा, इस भवन में क्या करते हैं। ____ फकीर था कि जवाब ही न दे। अब तो सम्राट भी उत्तेजित होने लगा। उसने फिर कहा-फकीर साहब आपने पूरे आश्रम के बारे में बताया लेकिन इस भवन के बारे में बार-बार पूछने पर भी कुछ नहीं बताया। बताइए न आखिर आप लोग इस भवन में करते क्या हैं ? सम्राट की उत्तेजना देखकर फकीर मुस्कराया और धीरे से बोला, सम्राट इस भवन में हम लोग कुछ भी नहीं करते हैं। सम्राट हैरान हुआ, कुछ भी नहीं, फिर इसे बना क्यों रखा है ? यह ध्यान
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