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से देखते हैं, कानों से सुनते हैं और जिह्वा से रस पाते हैं, नासापुटों से सुगंध लेते हैं, त्वचा से स्पर्श का बोध होता है, लेकिन यदि हम ध्यान में उतर जाएँ और इन्द्रियातीत हो जाएँ, बाह्य इन्द्रियों से परे हो जाएँ तो भीतर क्षण-क्षण वह उन सबका अनुभव करेगा जो इन्द्रियाँ बाहर से देती थीं। बिना किसी इन्द्रिय के सहारे वह भीतर छिपे हुए दृश्य देख सकता है, अन्तर के संगीत को सुन सकता है, अमृत का रसपान कर सकता है। ध्यान के द्वारा यह सब पाया जा सकता है। तुम जिन आकाश सुमनों की बात करते हो, वे सब भीतर विद्यमान हैं, बस वहाँ पहुँचने की जरूरत है। भीतर का विराट आकाश हृदय-सुमन लेकर तुम्हारा स्वागत करने को तत्पर है।
एक बात का स्मरण रखना तुमने जो कर्म-बंधन जन्मों-जन्मों के योग में बांधे हैं उन्हें ध्यान के क्षण काट देते हैं। जब-जब तुम साधना और ध्यान की गहराई में होते हो, तुम्हारे बंधन खुद-ब-खुद टूटते चले जाते हैं। ध्यान की दिव्यता से इन कर्मों को हटाना ऐसे ही है जैसे दर्पण से धूल हटाना । एक दर्पण जिस पर वर्षों की धूल जमी हो, लेकिन कपड़ा फेरते ही वह पुनः चमकने लगता है। ठीक उसी तरह ध्यान का तौलिया चेतना पर जमी संस्कारों की धूल को साफ कर देता है। हमारी मुश्किल यह है कि हम भीतर के दर्पण को पहचान नहीं पाते और बाहर के दर्पणों की सफाई में ही उलझकर रह जाते हैं।
हमारा संसार भी तो दर्पण जितना ही है। जब तक दर्पण सामने हैं तो प्रतिबिम्ब है और दर्पण के सामने से हटते ही चेहरा साफ । ठीक ऐसे ही जैसे दर्पण में दिखाई देने वाला चेहरा झूठा होता है वैसे ही हमारे द्वारा निर्मित संसार भी मिथ्या होता है।
किसी किसान को जब वह खेत में हल चला रहा था, तो कुछ चमकता हुआ-सा प्रतीत हुआ। उसने उस वस्तु को उठाया, मिट्टी साफ की तो वह और चमकने लगा। साफ करके जब वह उसे अपने सामने लाया तो उसमें उसी का चेहरा दिखाई देने लगा। वह समझ न पाया कि वह वस्तु क्या है। उसमें तो उसका ही प्रतिबिम्ब दिख रहा था। यह एक दर्पण था, लेकिन उसने दर्पण क्या होता है, यह न जाना। वह उलटता-पलटता और अपनी ही छवि उसमें पाता। उसने सोचा ओह यह एकदम मेरे जैसा चेहरा, वही आँख, वही नाक, वैसा ही चेहरा, अरे ! मैं समझ ही नहीं पा रहा हूँ कि यह मेरे पिताजी का चित्र है। उसे याद आया कि लोग-बाग कहते हैं कि वह तो अपने पिताजी
जैसा दिखता है। बहुत श्रद्धाभाव से उसने अपने ही प्रतिबिम्ब को पिता का चित्र समझकर प्रणाम किया और जेब में रखकर घर ले आया और सबकी नजर बचाकर वह दर्पण तिजोरी में रख दिया। 12 : : महागुहा की चेतना
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