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गया, हम उन बातों की गहराई तक न पहुँच पाए। हमने बाहर चारों ओर देखा, तो पाया कि सब बातें करते हैं आचरण कोई नहीं करता और हम भी भेड़चाल में शामिल हो गये। हम भूल गये कि हम वह नहीं है जो दिखाई दे रहे हैं। हमारे भीतर तो सिंहत्व की गर्जना समाई हुई है। और जिस दिन यह होश आता है, जब यह जागरूकता आती है तब हम सत्य की चर्चा नहीं करते, आचरण करते हैं। जो जीवन में हो रहा है उसका गम न करें, बस अपने बोध को जगाए रखें, शेष अनहोनी भी होनी में तब्दील हो जाएगी। तब तुम उसे अनहोनी न मानकर अपनी तकदीर का खेल ही समझोगे। तुम जानोगे कि यह होनी ही थी। कोई अनहोनी नहीं थी कि दुकान में आग लग गई, यह होने ही वाला था। जो तुम्हारे तकदीर में था वह किसी रूप में सामने आ गया।
आज का सूत्र जीवन की भव्यता और शांति पाने का सदा स्मरणीय सूत्र है : बीते को मत सोचो और अनबीते का जाल मत बुनो। जो हो रहा है, वह होनी ही है। होनी को हो लेने दो। होनी का हो जाना ही, होनी से धैर्यपूर्वक गुजर जाना ही, होनी से मुक्त होने का उपाय है।
अगला सूत्र है : 'करना था क्या कर चले बनी गले की फांस'-क्या करने को तुम्हें जन्म मिला था और क्या तुमने कर लिया। ज्ञानी कहते हैं कि गर्भस्थ शिशु भगवान से प्रार्थना करता है कि मुझे यहाँ से बाहर निकालो, इस अंधकूप से बाहर निकालो। बाहर आकर मैं तुम्हारी पूजा-अर्चना करूंगा, तुम्हारा ध्यान धरूंगा, तुम्हारी साधना करूंगा, जीवन का कायाकल्प करूंगा; और करता क्या है ?
गर्भ काल में तूने बंदे, अरे किये कितने वादे।
आकर उलझ गया दुनिया में, भूल गया सारे वादे ।। तुम जिंदगी में आए थे बंधनों से मुक्त होने के लिए पर देखो अपने अन्तस को, तुम पाओगे कि तुम तो और जकड़ गए हो। मुक्ति कहाँ ? यहाँ तो बंधन और मजबूत हो गये हैं। तुम तो भगवत्ता का फूल खिलाने आए थे, लेकिन तुम्हारे चारों ओर शैतानियत के कांटे छाने लगे। तुम्हारी आकांक्षा तो स्वर्ग पाने की रहती है, लेकिन जीते जी स्वर्ग नहीं मिल पाता तो मरकर ही स्वर्गीय हो लेते हो। कभी सोचा है-'नारकीय' भी हो सकते हो, लेकिन संसार में स्वर्ग पाने की इच्छा बलवती रहती है और तुम स्वर्गीय हो जाते हो। यहाँ तुम आते हो हीरे तलाशने, लेकिन कांच के टुकड़े ही हाथ लगते हैं। जो-जो तुम पाना
106 : : महागुहा की चेतना
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