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________________ साक्षी हों वर्तमान के फकीर रिझाई लम्बी यात्रा करता हुआ अपने गुरु के पास पहुँचा और प्रणाम कर कहने लगा, 'सद्गुरु, मैं यहाँ अभिमंत्र प्राप्त करने की आकांक्षा से आया हूँ। आप मुझे अभिमंत्र दें।' 'तुम यहाँ आए तुम्हारा स्वागत है', सद्गुरु ने कहा 'लेकिन मैं तुमसे कुछ कहूँ, तुम्हें कोई अभिमंत्र दूं, उससे पूर्व तुम्हें मेरे कुछ प्रश्नों के उत्तर देने होंगे। रिझाई बोला, 'पूछे ।' सद्गुरु ने पूछा, 'रिंझाई तुम कहाँ से आए हो।' रिझाई ने कहा, 'प्रभु, इसी की तलाश में तो आपके पास आया हूँ। मैं कहाँ से आया हूँ यह जानने-समझने के लिए ही तो आपके चरणों में उपस्थित हुआ हूँ। हाँ, अगर आप नगर और गांव के बारे में पूछ रहे हैं तो जिस स्थान को मैं छोड़ चुका हूँ उसके बारे में मैं कभी स्मरण नहीं करता। 'यह तो ठीक है, लेकिन जिस गांव से तुम आ रहे हो, वहाँ चावल का भाव क्या है?' गुरु ने पूछा। रिझाई ने कहा, 'मैं जहाँ से आ गया हूँ, वहाँ से पूरी तरह आ गया हूँ। मुझे नहीं पता, वहाँ क्या है, क्या नहीं, अब इसके बारे में मुझे कुछ भी ज्ञात नहीं है। जो दृश्य बीत गया है, जो बातें बीत गई हैं, जो स्थान छूट गया है उसके बारे में मैं कभी चिंतन नहीं करता। गुरु ने अन्तिम प्रश्न पूछा, 'अच्छा तो तुम किस मार्ग से आए हो।' 'गुरुवर जिस मार्ग से गुजरता हूँ, उसे छोड़कर आ जाता हूँ, जिस पुल को पार कर लेता हूँ, वह मेरे लिए टूट जाता है और जिन सीढ़ियों से निकल जाता हूँ, वे मेरे लिए गिर जाती हैं। गुरुवर मैं व्यतीत का चिंतन नहीं करता और न ही भविष्य की खूटियों में अपनी चेतना को लटकाने का प्रयास करता हूँ,' रिझाई बोला 'मैं वर्तमान का साक्षी हूँ, वर्तमान का दृष्टा हूँ, वर्तमान की ही विपश्यना कर रहा हूँ।' तब साक्षी हों वर्तमान के : : 101 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003894
Book TitleMahaguha ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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