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श्वासों के साथ ओम् का अंतरमथन करना। तीसरा चरण है: स्वास्थ्य शांतिपूर्वक जीवनयापन करना। हमारी यह अज्ञानता है कि हम केवल योग अर्थात् नाभि पर 10 मिनट ध्यान करना। चौथा चरण है : धन-संपत्ति और सुविधा साधनों को ही सुख का मूल आधार समझते आनंदयोग अर्थात् हृदय में 10 मिनट एकाग्र होना। पाँचवा चरण है: हैं, पर वास्तव में ऐसा नहीं है। सम्पन्न व्यक्ति भी चिंतित, तनावग्रस्त ज्ञान योग अर्थात् दोनों भौहों के मध्य ललाट प्रदेश की ओर 10 मिनट और रुग्णचित्त हो जाता है। जिसके पास जितनी अधिक सम्पन्नता है ध्यान धरना व अंत में तीन बार ओम् का उद्घोष करते हुए साधना पूर्ण उसके पास समस्याएँ भी उतनी ही अधिक हैं। करना।
श्री चन्द्रप्रभ 'ऐसे जिएँ' पुस्तक में सुख का रहस्य बताते हैं, श्री चन्द्रप्रभ ने तन-मन में शांति भाव एवं आनंददशा की "सुखी वह नहीं है जिसके पास मोटर-बंगला है, वरन् वह है जो चैन अभिवृद्धि करने के लिए 'शांति पाने का सरल रास्ता' पुस्तक में संक्षिप्त की नींद सोता है और स्वस्थ मानसिकता का मालिक है।" व्यक्ति का विधि भी प्रदान की है। कई बार ध्यान के दौरान मानसिक चंचलता, जीवन दु:खी इसलिए है, क्योंकि उसका चित्त रुग्ण एवं विक्षिप्त है। विचार, वृत्तियाँ,संकल्प-विकल्प और निंद्रा-तंद्रा ज्यादा हावी हो जाते जहाँ शांत चित्त और प्रसन्न हृदय जीवन को स्वर्गमय बनाते हैं, वहीं हैं। इस स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए श्री चन्द्रप्रभ ने ओम् के साथ अशांत चित्त और उदास मन जीवन में नरक निर्मित कर देते हैं। लगभग 10-20 गहरी साँस, फिर सहज श्वास की प्रक्रिया दोहराने की प्रेरणा आज नब्बे प्रतिशत लोग किसी न किसी तरह के दुःख, तनाव और रोग दी है।
से घिरे हैं। उसका कारण बाहरी परिस्थिति कम, भीतरी मन:स्थिति श्री चन्द्रप्रभ द्वारा प्रदत्त संबोधि-साधना मार्ग के विश्लेषण से ज़्यादा है। इसलिए हमें बाहर से भीतर मुड़ना होगा तभी पूर्ण समाधान स्पष्ट होता है कि ये ध्यान-विधियाँ वर्तमान मानव-मन के अनुरूप हैं हमारे हाथ लग पाएगा।
और उसकी हर आवश्यकता को पूरा करती हैं। आज का इंसान श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन है, "जीवन के वास्तविक रूपान्तरण के मानसिक शांति पाने के साथ बौद्धिक शक्तियों का जागरण भी करना लिए हमें स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ना होगा तभी हम जीवन की संपूर्ण चाहता है। जहाँ साक्षी ध्यान व मुक्ति ध्यान के प्रयोग व्यक्ति को चिकित्सा कर पाएँगे और सदाबहार सुख-शांति और मुक्ति लाभ के मानसिक शांति व आनन्द प्रदान करते हैं, वहीं मंत्र ध्यान व चैतन्य ध्यान स्वामी बन पाएँगे।" यद्यपि ध्यानयोग का मूल ध्येय अस्तित्व-बोध के प्रयोग व्यक्ति की सुप्त शक्तियों के जागरण में सहयोगी बनते हैं। ये और आध्यात्मिक विकास है, पर आम आदमी को इससे कुछ लेनाध्यान-विधियाँ न केवल भीतर की अच्छी-बुरी वृत्तियों से मुलाकात देना नहीं है। वह तो सुखी और निरोगी जीवन जीना चाहता है। आज करवाती हैं, वरन् बुरी वृत्तियों को पहचानकर उनका अच्छी वृत्तियों में मनोविज्ञान व चिकित्सा विज्ञान ने स्वीकार किया है कि कोई भी रोग रूपांतरित करने का मार्ग भी देती हैं। डॉ. दयानंद भार्गव ने कहा है, शारीरिक नहीं होता। हर रोग की शुरुआत मन से होती है और मन के "ध्यान की सफलता की दो कसौटियाँ हैं : पहली, हमारे राग-द्वेष क्षीण स्तर पर उसका समाधान न हो तो वह शारीरिक अंगों के, इन्द्रियों के हुए या नहीं? दूसरी, अपने कर्तव्यों के प्रति दायित्व-बोध बढ़ा है माध्यम से प्रकट होता है। इसलिए मनोग्रंथियाँ ही मनुष्य का रोग हैं। अथवा नहीं। इन कसौटियों पर खरा उतरने पर ही ध्यान समाज-शुद्धि रोग की तह में संवेगात्मक चित्त-वृत्तियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। का बहुत बड़ा साधन बन सकता है।" नि:संदेह संबोधि-साधना का संबोधि ध्यान-योग इन संवेगात्मक चित्त वृत्तियों के संयम का उपाय दिव्य मार्ग दोनों कसौटियों पर खरा उतरता है इसलिए इसका आचमन है। श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं, "ध्यान से व्यक्ति अपने शुद्ध स्वरूप और कर बेहतर विश्व का निर्माण किया जा सकता है। संबोधि साधना मार्ग उसे विकृत करने वाली चित्त वृत्तियों को जानने और धीरे-धीरे उनसे का व्यावहारिक मार्गदर्शन प्रतिवर्ष जोधपुर के कायलाना रोड स्थित मुक्त होने लगता है। इस तरह चित्त शुद्धि से रोग मुक्ति स्वत: फलित हो प्रसिद्ध साधना स्थली संबोधि-धाम में आयोजित होने वाले ध्यान-योग जाती है।" शिविरों में दिया जाता है, जिससे अब तक लाखों लोग अपने जीवन का वर्तमान युग की यह सबसे बड़ी खोज़ है कि हम अपनी कायाकल्प कर चुके हैं।
मानसिकता को बदल सकते हैं। भीतर के तनाव, विकार और कषायों संबोधि-ध्यान और जीवन-निर्माण
को काट कर उच्च मानसिक क्षमता, प्रज्ञा और चैतन्य की शक्ति को
जागृत कर सकते हैं। श्री चन्द्रप्रभ का इस संदर्भ में कहना है, "इसके जीवन मूल्यवान है। यह अनंत संभावनाओं और सम्पदाओं का
लिए व्यक्ति को अपने स्वयं के साथ कुछ निर्मल प्रयोग करने होंगे, उसे कोष है। जीवन-मूल्य के सामने किसी अन्य पदार्थ को नहीं रखा जा
अपने भीतर वहाँ तक जाना होगा, जहाँ तनाव-विकार-अज्ञान और सकता। जीवन के संदर्भ में श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन कहता है, "जीवन है
कषाय की जड़ें पाँव फैलाए बैठी हैं। संबोधि ध्यान के प्रयोगों से वहाँ तो तुच्छ से तुच्छ वस्तु भी मूल्यवान है। जीवन नहीं तो मूल्यवान वस्तु
तक पहुँचना संभव है। मनुष्य की मानसिक शांति, बौद्धिक भी अर्थहीन है, एक अकेले जीवन के समक्ष पृथ्वी भर की समस्त
ऊर्जास्वितता और आध्यात्मिक स्वास्थ्य लाभ के लिए संबोधि ध्यान सम्पदाएँ तुच्छ और नगण्य हैं। न जन्म का मूल्य है, न मृत्यु का । जीवन
एक बेहतरीन प्रयोग पद्धति है। तनाव-मुक्ति और जीवन-शुद्धि के की उदात्तता और महानता ही जन्म और मृत्यु को मूल्यवान बनाती है।
लिए संबोधि ध्यान एक पूर्ण विज्ञान है।" श्री चन्द्रप्रभ ने ध्यान-योग यदि व्यक्ति जीवन की हर गतिविधि और अभिव्यक्ति को मधुरता से
पुस्तक में संबोधि ध्यान के अंतर्गत तनाव-मुक्ति व जीवन-शुद्धि के परिपूरित कर ले तो वह धरती पर ही स्वर्ग के गीत गुनगुना सकता है।"
लिए दस मिनट का छोटा प्रयोग दिया है, जिसका प्रयोग कर हम नई जीवन सरल है, पर स्वयं व्यक्ति ने ही उसे जटिल बना दिया है।
ताज़गी व आनंद की अनुभूति कर सकते हैं। वे कहते हैं, "व्यक्ति दस भागमभाग भरी जिंदगी ने व्यक्ति को अशांति और तनाव के दोराहे पर
मिनट के लिए श्वास लेते समय यह बोध बनाए कि मैं अपने तन-मन लाकर खड़ा कर दिया है। हर व्यक्ति का एक ही लक्ष्य है : सुख
को शांतिमय बना रहा हूँ। श्वास छोड़ते समय यह मानसिकता रखे कि 182 » संबोधि टाइम्स For Personal & Private Use Only
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