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________________ पर सकते, वे कभी 'योगी' नहीं बन सकते। स्वयं के लिए संन्यास लेने वाले महापुरुषों को भी आखिर मानवता के लिए कुछ करके ही तृप्ति और मुक्ति मिलती है।" वे धार्मिक क्रियाओं के विरोधी नहीं हैं, पर उन्होंने क्रिया के पीछे छिपे मूल उद्देश्य को समझने की प्रेरणा दी है। उनका मानना है, "लोग धर्म के नाम पर सामायिक तो करते हैं, शांति और समता नहीं रखते, सामायिक करना क्रिया है और शांतिसमता रखना धर्म है हाथ जोड़कर प्रार्थना तो खूब की जाती है, यह एक क्रिया है लेकिन प्रभु से प्रेम करना धर्म है। आप अपने सत्य और ईमान पर अडिग रहें, शील और मर्यादा पर सुदृढ़ रहें। जीवन में सरलता, मधुरता और विनम्रता का ग्लीसरीन लगाएँ, ये तत्त्व हुए धर्म, बाकी सब तो धर्म के खोल हैं।” उन्होंने मानवीय मूल्यों को आत्मसात् करने के लिए निम्न व्यावहारिक मार्ग सुझाए हैं 1. सड़क पर यदि कोई अपरिचित व्यक्ति घायल पड़ा है तो उसे अपनी मदद देकर अस्पताल पहुँचाएँ । 2. कोई पक्षी घायल या मरणासन्न है तो उसे पानी पिलाएँ । 3. यदि आप डॉक्टर हैं तो आपके यहाँ जो मरीज आते हैं उनमें से जो आपकी फीस नहीं चुका सकते उन्हें निःशुल्क दवा दें। 4. हर व्यक्ति अपनी कमाई का ढाई प्रतिशत धन दीन-दुःखी और गरीबों के लिए निकाले । इससे स्पष्ट होता है कि वे ऐसे धर्म को जीने की प्रेरणा देते हैं जो जीवंत एवं व्यावहारिक हो। यदि व्यक्ति धर्म की मूल आत्मा को जीने की कोशिश करेगा तभी धर्म स्व- पर कल्याणकारी सिद्ध हो पाएगा। " 5. धर्म और युवा वर्ग - आज यह समस्या मानी जाती है कि युवा पीढ़ी धर्म से दूर हो गई है, पर वास्तविकता कुछ और है। आज का युग धरती का स्वर्णिम युग है। आज के युवा धर्म, दान, तपस्या, तीर्थयात्रा, सत्संग करने में सबसे आगे हैं। मानवीय सेवा से जुड़ी बड़ी-बड़ी संस्थाएँ युवा चला रहे हैं। महोपाध्याय श्री ललितप्रभ सागर महाराज का कहना है, "आज की युवापीढ़ी जितनी धार्मिक है, उतनी इतिहास में पहले कभी नहीं हुई। युवाओं में दान देने की प्रवृत्ति बढ़ी है। मंदिरों, तीथों सत्संगों में युवाओं का रुझान बढ़ा है।" यह बात अवश्य सत्य है कि आज का युवा निजी जिंदगी को स्वतंत्र तरीके से जीना चाहता है। युवाओं पर व्यसन व फैशन हावी है, वह पारिवारिक कर्तव्यों के प्रति उदासीन है। श्री चन्द्रप्रभ इन परिस्थितियों से पूर्णत: वाकिफ हैं। उन्होंने युवा शक्ति में आगे बढ़ने का जोश भरा है, उन्हें उनके कर्तव्यों के प्रति जागरूक किया है और संस्कारों को आत्मसात् करने की प्रेरणा दी है। वे कहते हैं, "युवा देश की रीढ़ है, भारत की प्रतिभाओं ने पूरे विश्व को प्रभावित किया है इसलिए युवापीढ़ी को नैतिक और संस्कारशील बनाना भी बेहद जरूरी है।" श्री चन्द्रप्रभ ने युवाओं में राष्ट्र भावना को भी पैदा करने की कोशिश की है। उनका दृष्टिकोण है, "युवाओं को चाहिए कि वे देश पर गौरव करना सीखें एवं इसके नैतिक मूल्यों को जीवित करने की कोशिश करें। युवा संगठित होकर भ्रष्टाचारियों, रिश्वतखोरों और देशद्रोहियों को देश से खदेड़ डालें।" उन्होंने देश की समस्याओं यथा आतंकवाद, भ्रष्टाचार, गंदगी, आरक्षण, जातिवाद आदि को संघर्ष कर समाप्त करने की सलाह दी है। इससे स्पष्ट होता है कि युवापीढ़ी धर्म-अध्यात्म की ओर अग्रसर है। श्री चन्द्रप्रभ ने युवापीढ़ी को जीवन के प्रति नैतिक व संस्कारित बनने के लिए जागरूक किया है। 74 संबोधि टाइम्स Jain Education International 6. धर्म और राजनीति भारत में राजनीति और धर्मनीति का लम्बा इतिहास रहा है। राजा लोग निर्णय लेने से पहले धर्मगुरुओं से सलाह लिया करते थे । यद्यपि राजनीति और धर्मनीति बिल्कुल भिन्न हैं फिर भी राजनीति पर अंकुश रखने के लिए धर्मनीति को अनिवार्य माना गया, पर जब से लोकतंत्र स्थापित हुआ और राजनेताओं का एकमात्र उद्देश्य कुर्सी को बचाना रह गया तब से राजनीति बड़ी छिछली हो गई। अब राजनीति में सभी मर्यादाओं का उल्लंघन होता जा रहा है। ऐसा कोई भी अनैतिक कार्य नहीं बचा जो राजनेताओं द्वारा न किया जाता हो। राजनीति सेवा की बजाय स्वार्थ से जुड़ गई है। राजनीति नीतिविहीन हो गई है और चारों ओर अनैतिकता, बेईमानी, भ्रष्टाचार, अनाचार फैल गया है। धीरे-धीरे धार्मिक संस्थाओं में भी राजनीति बढ़ती जा रही है। एक तरफ राजनीति पर धर्मनीति का अंकुश लगाने की जरूरत है तो दूसरी तरफ धर्मनीति को राजनीति से मुक्त करने की जरूरत है। इस संदर्भ में श्री चन्द्रप्रभ का मानना है, "बगैर धर्म के राजनीति अंधी है और बगैर राजनीति का धर्म मानवता की ज्योति।" इस तरह वे राजनीति को शुद्ध करने की और धर्म को भी राजनीति से मुक्त करने की सलाह देते हैं। - 1 7. धर्म और नारी भारतीय समाज के इतिहास में नारी की स्थिति दयनीय रही है। समय-समय पर अनेक महापुरुषों ने नारीउत्थान के कार्य किए। भगवान महावीर ने सर्वप्रथम अपने धर्म संघ में नारी को दीक्षित कर उसे सम्मानपूर्ण स्थान प्रदान किया। यद्यपि नारीजाति के बल पर धर्म-परम्परा आगे बढ़ी फिर भी धर्म-शास्त्रों में नारी की आलोचना हुई है। समय के साथ नारी उत्थान के कार्य उसे हुए, सामाजिक महत्त्व मिला। नारी जाति ने विभिन्न क्षेत्रों में ऊँचाइयों को उपलब्ध किया और आज समाज, देश और विश्व के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। श्री चन्द्रप्रभ नारी जाति के विकास के पूर्ण समर्थक हैं। उन्होंने नारी स्वतंत्रता का समर्थन किया है एवं नारी जाति के उत्थान के लिए क्रांतिकारी प्रेरणाएँ दी हैं। उन्होंने घर-परिवार के कार्यों तक सीमित रहने वाली महिलाओं को अपनी शिक्षा का रचनात्मक कार्यों में उपयोग करने की सीख दी है। वे कहते हैं, "महिलावर्ग स्वयं को घर की चारदीवारी में कैद न करे। विकसित भारत का निर्माण करने के लिए महिलाओं को पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ना चाहिए।" यह सत्य है कि पिछले पचास वर्षों में महिलाओं की सम्मानजनक प्रगति हुई है। नारी जाति ने अवसरों का पूरा उपयोग किया है। अगर इसी तरह उनको अवसर मिलते रहे तो एक दिन विश्व में पुरुषों के समानान्तर महिलाओं का अभ्युदय होगा। उन्होंने महिलाओं को पुरुषों के सामने हाथ फैलाने की बजाय खुद कमाने की सीख दी है। उनका मानना है, " अब जमाना महिलाओं का है। वे पुरुषों के सामने हाथ फैलाने की बजाय धंधा करें, आगे बढ़ें।" इससे स्पष्ट होता है कि वे नारी विकास को नए आयाम देकर उन्हें पुरुषों के समकक्ष खड़ा करना चाहते हैं। - 8. धर्म और शिक्षा आज का युग समृद्धि का युग है और समृद्धि हेतु शिक्षा अपरिहार्य है । शिक्षा का तेजी से विस्तार होता जा रहा है। शिक्षा व्यक्ति को शिक्षित बनाती है और धर्म संस्कारित वर्तमान में शिक्षा के साथ दीक्षा अर्थात् संस्कारों पर भी ध्यान देना जरूरी है अन्यथा व्यक्ति व्यापार का प्रबंधन करना तो सीख जाएगा, पर जीवन का प्रबंधन For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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