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किया जाता है। आज हर व्यक्ति अपने क्षेत्र में सफल होना चाहता है। छात्र पढ़ाई में, युवक कॅरियर में, व्यापारी व्यापार में, नेता राजनीति में और गृहिणी परिवार में अब कॅरियर, कामयाबी, सफलता जैसे शब्द चरम सीमा पर हैं। श्री चन्द्रप्रभ ने सफलता, कॅरियर, कामयाबी जैसे बिन्दुओं पर नए ढंग से मार्गदर्शन प्रदान किया है। वे सफलता को केवल अर्थ से नहीं जोड़ते वरन् व्यक्तित्व के साथ जोड़ते हैं। उन्होंने हर क्षेत्र में सफल होने की प्रेरणा दी है। उन्होंने सफलता और समृद्धि को पैसे तक सीमित मानने की भूल न करने की सलाह दी है। वे कहते हैं, " सफलता और समृद्धि का अर्थ पैसा ही नहीं है। जीवन के सौ क्षेत्र हैं, स्वयं को हर ओर से पूर्णता दीजिए । हमारी सफलता कहीं सीमित न हो जाए, उसका लाभ औरों तक भी पहुँचे हमें ऐसा प्रयास और पुरुषार्थ करते रहना चाहिए।" उन्होंने सफलता को जीवन और व्यक्तित्व के साथ भी जोड़ा है। वे व्यापार के साथ हर किसी को जीवन में भी सफल देखना चाहते हैं। उन्होंने कॅरियर बनाने के साथ सबके सामने विनम्रता और मिठास से पेश आने की, गैर इंसानों के काम आने की, विपरीत वातावरण में भी खुद पर संयम और धैर्य रखने की कला भी सिखाई है।
इन विचारों से स्पष्ट होता है कि वे सफलता की व्याख्या में उदारवादी हैं। हर दृष्टिकोण से सफल इंसान बनना उनकी प्रेरणा मुख्य है। उन्होंने इंसान के सोये भाग्य को जगाने के लिए, नपुंसक हो चुकी चेतना में पुरुषार्थं और आत्मविश्वास के प्राण फूंकने के लिए, साधारण सोच से असाधारण सोच का मालिक बनने के लिए, जीने का अंदाज बदलने के लिए, व्यक्तित्व को निखारने के लिए, बेहतर व्यवहार का मालिक बनने के लिए, सफलता की ऊँचाइयों को छूने के लिए विस्तृत मार्गदर्शन प्रदान किया है। वे केवल सफलता के सपने देखने की प्रेरणा ही नहीं देते वरन् उसे पाने का सरल मार्ग भी बताते हैं, वे उस मार्ग में आने वाली बाधाओं से भी साक्षात्कार करवाते हैं, उन बाधाओं को पार करने की शक्ति भी प्रदान करते हैं। उन्होंने सफलता पाने के लिए निम्न विन्दुओं का मार्गदर्शन प्रदान किया है
1. लक्ष्य निर्धारण सभी भारतीय दर्शनों में दुःख मुक्ति, परम सुख प्राप्ति, मोक्ष, निर्वाण या ईश प्राप्ति आदि को जीवन के चरम लक्ष्य बताए गए हैं। श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन चरम लक्ष्य अथवा मृत्यु उपरांत लक्ष्य को पाने से पहले जीवन का लक्ष्य बनाने की प्रेरणा देता है। वे सफल जीवन के लिए श्रेष्ठ लक्ष्य का होना अनिवार्य मानते हैं। वे कहते हैं,‘“लक्ष्य को आँखों में बसाकर ही अर्जुन ने कभी चिड़िया की आँख को तो कभी मछली की आँख को बेधने में सफलता पाई थी। क्षेत्र चाहे व्यवसाय का हो या साधना का, विकास का हो या विज्ञान का, दृष्टि लक्ष्य पर हो, तो लक्ष्य अवश्य सिद्ध होगा। आपके जीवन में सफलता का सूर्योदय अवश्य होगा। अखिर आप भी अपने कर्म क्षेत्र के अर्जुन हैं। जिन तत्त्वों को अपना कर अर्जुन सफल हुए या दुनिया के अन्य महानुभाव जीवन और जगत के क्षेत्र में हर ओर विजयी हुए, तो आप और हम क्यों नहीं हो सकते?" वे लक्ष्यहीन जीवन को मौत तुल्य बताते हैं। उन्होंने लक्ष्य रहित जीवन की तुलना गोलपोस्ट रहित फुटबॉल के मैदान से की है। वे लक्ष्य से पहले कार्य-योजना को स्पष्ट कर लेने की सीख देते हैं। उन्होंने खरगोश और कछुए की कहानी से लक्ष्य की तुलना करते हुए कछुए की जीत का मुख्य कारण लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता को बताया। उन्होंने लक्ष्य प्राप्ति के लिए अर्जुन और एकलव्य से समर्पण भाव सीखने की प्रेरणा दी है।
62 > संबोधि टाइम्स
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2. इच्छाशक्ति का जागरण किसी भी कार्य को करने के लिए इच्छाशक्ति का होना अनिवार्य है। धर्म-दर्शनों ने इच्छा को मुक्ति का बाधक बताया है। महावीर ने तो 'इच्छा निरोधः तपः' अर्थात् इच्छा निरोध को श्रेष्ठ तप कहा है। इच्छा मन की चंचलता है एवं इच्छाशक्ति मन की एकाग्रता। इच्छा कार्य सिद्धि में बाधक है और इच्छाशक्ति आवश्यक है। श्री चन्द्रप्रभ सफलता प्राप्ति के लिए इच्छाओं की बजाय इच्छाशक्ति को बढ़ाने की प्रेरणा देते हैं। उन्होंने इच्छा को कभी न भरने वाला भिक्षापात्र कहा है वे कहते हैं, "जिसके जीवन में संकल्प। शक्ति और इच्छा-शक्ति सुदृढ़ एवं प्रबल है वह व्यक्ति हर कठिनाई से लड़ सकता है।" उन्होंने लक्ष्य के निकट पहुँचने के लिए इच्छाओं को सीमित करना अनिवार्य बताया है।
3. आत्मगौरव का अनुभव श्री चन्द्रप्रभ ने सफलता प्राप्ति के लिए आत्मगौरव करने की भी प्रेरणा दी है। उन्होंने आत्मगौरव का अर्थ अहंकार नहीं, स्वयं के प्रति सद्भाव रखना बताया है। वे कहते हैं, "कभी-भी अपने आपको दीन-हीन और गरीब मत समझो। स्वयं को हमेशा करोड़पति समझो। हमारी आँखें, हृदय, गुर्दे और अन्य अंगों की कीमत बाजार में कराड़ों में है, फिर किस बात की हीनता, किस बात का डर! अपने हृदय की तुच्छ दुर्बलता को किनारे कर दो। बस अपने आप पर गौरव करो। गौरव इसलिए करो, ताकि तुम हर समय उत्साहउमंग - ऊर्जा से ओत-प्रोत रह सको ।" इस तरह उन्होंने भीतर के स्वाभिमान को जागृत करने का पाठ सिखाया है।
4. आत्मविश्वास जगाएँ जीवन अमूल्य है। इसका सदुपयोग करने की प्रेरणा महापुरुषों ने दी है। जीवन जीने के लिए तन-मन का सशक्त होना आवश्यक है। परिस्थिति वश तन अशक्त हो जाए, पर मन सदा सशक्त रहना चाहिए। मन की यह ओजस्विता ही आत्मविश्वास कहलाती है। आत्म दर्शन, आत्म-ज्ञान जैसे शब्द मूल्यवान हैं, पर वर्तमान में आत्मविश्वास को विशेष महत्व दिया जाता है। श्री चन्द्रप्रभ सफल होने के लिए आत्मविश्वास जगाने की प्रेरणा देते हैं। उन्होंने आत्मविश्वास को जीवन की सबसे बड़ी शक्ति माना है। वे कहते हैं, " आत्मविश्वास से बढ़कर व्यक्ति की कोई सम्पत्ति नहीं होती और न ही आत्मविश्वास के बढ़कर कोई मित्र होता है।" उन्होंने आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए लाल बहादर शास्त्री, अब्राहिम लिंकन, रविन्द्र जैन, मार्टिन लूथर, डॉ. रघुवंश सहाय, हेलन केलर, सूरदास, नेपोलियन, तेनजिंग, एडमंड हिलेरी, कोलम्बस, गैलिलियो, शिवाजी, जार्ज वाशिंगटन, ओनामी जैसे सफल लोगों से प्रेरणा लेने की सीख दी है जिन्होंने शारीरिक विकलांगता और छोटी उम्र के बावजूद सफलता की नई ऊँचाइयों को छुआ था श्री चन्द्रप्रभ ने शानदार जीवन के दमदार नुस्खे नामक पुस्तक में आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए निम्न सूत्र प्रदान किए हैं
1. मन में बन चुकी हीनता की ग्रंथियों को समझकर हटाएँ। 2. स्वयं के कार्य पर भरोसा रखें।
3. संकल्प - शक्ति को मजबूत बनाएँ ।
4. हर क्षण उत्साह से भरे रहें ।
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5. सोच हो सकारात्मक सुखी, सफल एवं मधुर जीवन के लिए सोच का सकारात्मक होना अपरिहार्य है। सकारात्मक सोच की तुलना महावीर के अनेकांत या सम्यक् ज्ञान से की जा सकती है। श्री चन्द्रप्रभ का सकारात्मक सोच पर बेहतरीन दृष्टिकोण प्राप्त होता है। श्री
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