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________________ आकर्षित करती हैं और चोट भी मारती हैं। वर्णमाला के हर अक्षर से संबंधित लगभग अस्सी शब्द संगृहीत किए गए हैं। अधूरापन की व्याख्या करते हुए श्री चन्द्रप्रभ ने लिखा है कि " अधूरा काम करने की बजाय न करना ही अच्छा है।" अस्तित्व के संदर्भ में उन्होंने लिखा है कि "मन के शांत हो पर भीतर के शून्य में जिसका अनुभव होता है, वही तुम हो। " चोर के संदर्भ में लिखा कि बड़े चोर समाज के बीच जीते हैं और छोटे चोर कारागार में" परम गुरु कौन? का जवाब देते हुए वे कहते हैं, " आत्मा का सहज स्वरूप ही व्यक्ति का परम गुरु है।" वास्तव में देखा जाए तो हर शब्द की उपयोगिता सिद्ध करने में श्री चन्द्रप्रभ सिद्धहस्त नजर आते हैं। उन्होंने शब्दों की पुरानी व्याख्याओं की बजाय नए सिरे से नई व्याख्याएँ की हैं जो व्यक्ति को सोचने के लिए मज़बूर कर देती हैं। इससे सिद्ध होता है कि श्री चन्द्रप्रभ चलता-फिरता शब्दकोश है। शब्दों की नई व्याख्या का शब्दकोश देखने-जानने के लिए यह पुस्तक नया पुस्तकालय है। स्वयं का साक्षात्कार इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ ने धर्म और ध्यान से जुड़े विभिन्न तत्त्वों पर बेहतरीन प्रकाश डाला है। इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ द्वारा इंदौर ध्यान साधना शिविर के दौरान दिये गए प्रवचनों का संकलन है। ये प्रवचन कम, साधकों से वार्तालाप ज़्यादा हैं। पुस्तक को पढ़कर ऐसा लगता है कि व्यक्ति भीतर का स्नान कर रहा है। उड़िए पंख पसार इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ ने जीवन, जगत से लेकर अध्यात्म तक के विविध बिन्दुओं को छुआ है और सरल शैली में धार्मिक और आत्मिक उत्थान हेतु मार्गदर्शन प्रदान किया है। श्री चन्द्रप्रभ ने इस पुस्तक में जीवन जगत और अध्यात्म से जुड़े लगभग सभी पहलुओं की रोचक व्याख्याएँ की हैं। पुस्तक में सभी प्रवचन क्रमबद्ध रूप से दिए गए हैं जो व्यक्ति को क्रमशः आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। कायोत्सर्ग, लेश्यामंडल, गुणस्थान, अनुप्रेक्षा, विपश्यना जैसे कठिन विषयों को हृदयग्राही भाषा में प्रस्तुति देना निश्चित रूप से मुमुक्षुओं के लिए अभिनंदनीय है । यह पुस्तक किसी बाहरी लोक के दर्शन नहीं करवाती वरन् भीतर के स्वर्ग को ईजाद करने में बेहतरीन भूमिका निभाती है । यह पुस्तक अँधेरे में खड़े इंसान को प्रकाश पथ का अनुगामी बनाने में शत-प्रतिशत खरी उतरती है । पंछी लौटे नीड़ में इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ ने धर्म से जुड़े हुए विविध पहलुओं की मौलिक और समय सापेक्ष व्याख्या प्रस्तुत की है जो व्यक्ति की भ्रमणशील चेतना को स्वयं में लौट आने का आह्वान करती है। पुस्तक का एक-एक सूक्त अपने आप में अनुभव की गहराई लिए हुए है। समस्या से घिरा हुआ व्यक्ति अगर इसके दो चार सूक्त पढ़े, उसे अनुभूत होगा वह समस्या से पार हो चुका है। जो सूक्त हमें सबसे प्रेरक लगे उसे ऐसी जगह टँका दें जिस ओर सहज ही नज़र पड़ जाए, वह हमारे लिए शास्त्र की तरह काम करेगा। जैन पारिभाषिक शब्दकोश 'जैन पारिभाषिक शब्दकोश' एक ऐसी कृति है जो जैन धर्म, दर्शन व संस्कृति की पारम्परिक दुरूह भाषा को सरल बनाता है। हर Jain Education International महापुरुष अपने हिसाब से शब्दों का उपयोग करते हुए अनुभूत सत्य को प्रतिपादित करता है । प्रस्तुत शब्दकोश उन्हीं विशिष्ट शब्दों के विभिन्न अर्थों का ज्ञान प्रदान करता है। धर्म-दर्शनों के गहन अध्येता, महान चिंतक श्री चन्द्रप्रभ द्वारा तैयार किया गया यह सुंदर शब्दकोष न केवल जैन धर्मानुयायियों के लिए उपयोगी है वरन् अन्य मतावलम्बियों के लिए भी कल्याणकारी प्रयास है। यह शब्दकोश जैन धर्म एवं ज्ञानपिपासुओं के लिए बेहद उपयोगी कृति है। इसके माध्यम से हम धर्मदर्शन की गूढ़ता को सहजता से समझ सकेंगे। जब भी कोई पारम्परिक शब्द, जो समझ से बाहर हो, तुरन्त इसका क्रमयुक्त उपयोग कर उसे समझा जा सकता है । हम इस पुस्तक को आस-पास रखें ताकि समयसमय पर हमें मार्गदर्शन मिलता रहे। निश्चय ही यह पुस्तक अर्थ - अंधकार में खड़े लोगों के लिए अर्थवान साबित करने वाली है। रूपान्तरण , इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ ने जीवन के आध्यात्मिक उत्थान से जुड़े हुए विविध विषयों पर अपनी मौलिक दृष्टि प्रदान की है। जीवन रूपांतरण, स्वयं की स्वयं के लिए उपयोगिता, सत्संग का महत्व, मंदिरों का औचित्य, व्रतों का महत्व, वानप्रस्थ का स्वरूप, जीवन में विवेक का महत्त्व ध्यान से चित्त वृत्तियों पर विजय एवं प्रभु भक्ति आदि विभिन्न बिंदुओं पर इस पुस्तक में बेहतरीन मार्गदर्शन दिया गया है। श्री चन्द्रप्रभ ने रूपान्तरण की शुरुआत पुरुषार्थ से कर जीवन को मंदिर और उत्सव पूर्ण बनाने की सीख दी है। वे स्वयं को ही स्वयं के उत्थान - पतन की आधारशिला मानते हैं। उन्होंने उत्थान की ओर बढ़ने के लिए मानव जाति को पुस्तक में अनेक सूत्र दिए हैं। जो व्यक्ति जीवन में सर्वांगीण विकास करना चाहता है उसके लिए यह पुस्तक औषधि का काम करती है। पर्युषण प्रवचन " इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ ने जैन धर्म के महान आध्यात्मिक पर्व पर्युषण पर्व एवं महान आगम शास्त्र कल्प सूत्र पर विस्तृत प्रकाश डाला है। उन्होंने पर्युषण का अर्थ पर्युषण की आवश्यकता, तीर्थंकरों का जीवन-चरित्र, प्रभावी जैन आचार्यों की परम्परा एवं साधुओं की आचार व्यवस्था की बेहद सरल तरीके से व्याख्या की है। कल्पसूत्र एवं पर्युषण पर्व के रहस्य को संक्षिप्त में समझने के लिए यह पुस्तक प्रकाश स्तंभ का काम करती है। धर्म में प्रवेश - इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ ने सफल और सार्थक जीवन के आध्यात्मिक नियमों का उल्लेख किया है। स्वर्ग नर्क पुनर्जन्म, पूर्वजन्म, आत्मा-परमात्मा, मुक्ति जैसे तत्त्वों की रोचक एवं क्रमबद्ध तरीके से इस पुस्तक में व्याख्या की गई है। धर्म के प्रयोग परलोक को सुधारने की बजाय वर्तमान जीवन को निर्मल, पवित्र, नैतिक और आनंदपूर्ण बनाने के लिए है। धर्म के सरल एवं आध्यात्मिक स्वरूप को समझने के लिए यह पुस्तक बेहतरीन मार्गदर्शक का काम करती है। जीवन में लीजिए पाँच संकल्प इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ ने जीवन के नैतिक एवं आध्यात्मिक कायाकल्प करने का मार्ग सुझाया है। उन्होंने नैतिकता, धर्म, अध्यात्म For Personal & Private Use Only संबोधि टाइम्स 45 www.jainelibrary.org
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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