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चिकित्सा एवं मानसिक विकास के बेहतरीन गुर बताए हैं। सफलता के गुर सिखाने वाले देश के पहले संत
संत लोग सामान्य तौर पर त्याग, वैराग्य की ही प्रेरणा देते हैं या भागवत कथाओं के जरिये भगवन्नाम लेने पर जोर देते हैं, पर श्री चन्द्रप्रभ भगवान का नाम लेने के साथ संसार में सुखी और सफल होने का पाठ भी पढ़ाते हैं। शायद देश में श्री चन्द्रप्रभ ही ऐसे संत होंगे जिन्होंने नई पीढ़ी को जीने की कला और सफलता के मंत्र सिखाने वाली ढेर सारी किताबें दी हैं। अपने प्रभावी विचारों और प्रवचनों से उन्होंने नई पीढ़ी में प्रगति का एक नया जूनून जगाया है। दुनिया में चाहे कोई कितना भी हताश क्यों न हो गया हो अगर श्री चन्द्रप्रभ का कोई एक उद्बोधन सुन ले तो वह एक अद्भुत उत्साह एवं ऊर्जा से भर उठेगा। उसके अंधेरे जीवन में आत्मविश्वास का प्रकाश भर उठेगा।
श्री चन्द्रप्रभ जीवन में ऊँचाइयाँ पाने व सफल बनने में विश्वास रखते हैं। उन्होंने स्वयं भी भौतिक एवं आध्यात्मिक ऊँचाइयों को छुआ और लोगों को भी सफल बनने का मार्ग प्रदान किया। वे सफलता के मंत्रदृष्टय हैं। वे कहते हैं, "सफलता कोई मंज़िल नहीं, एक सफर है। मैट्रिक में मेरिट आकर कोई बैठ जाता तो वह एम. बी. ए. नहीं बन पाता, करोड़पति होकर संतोष कर लेता तो वह धीरूभाई अंबानी नहीं बन पाता और विश्व सुंदरी बनकर हाशिए पर चली जाती तो वह ऐश्वर्या की तरह महान् अभिनेत्री नहीं बन पाती।" उनका मानना है, "सफलता तो तब मिलती है जब हमारी श्वास में सफलता का सपना बस जाता है।” सफलता के संदर्भ से जुड़ी उनकी कुछ खास घटनाएँ उल्लेखनीय हैं -
प्रतिभा कैसे जगाएँ एक 18 साल का युवक श्री चन्द्रप्रभ को प्रणाम कर कहने लगा - गुरुजी, मैं अपनी प्रतिभा को जगाना चाहता हूँ, मुझे इसके लिए क्या करना चाहिए? श्री चन्द्रप्रभ ने कहा प्रतिभा को - निखारना है तो पेंसिल के उदाहरण को सदा याद रखो। जैसे पेंसिल में जो कुछ भी है, वह सब उसके भीतर है, पर उसको नुकीला बनने के लिए किसी सार्पनर में जाना पड़ता है, अपनी छिलाई करवानी पड़ती है, उसके बाद कुछ लिखना होता है और गलती हो जाए तो उसे सुधारना पड़ता है ठीक वैसे ही जो छात्र किसी योग्य गुरु के हाथों में स्वयं को सौंपता है, उनके अनुशासन से गुजरता है, जीवन में नए काम करने की कोशिश करता है, कुछ गलत हो जाए तो माफी माँग वापस वैसा न करने का संकल्प ले लेता है उसके भीतर की रही हुई सुप्त प्रतिभा अवश्यमेव नुकीली एवं जाग्रत हो जाती है।
पत्थर भी गोल हो गया एक छात्र श्री चन्द्रप्रभ के पास आया। वह दुखी और उसका चेहरा उदास था। श्री चन्द्रप्रभ ने उससे पूछा क्या बात है? परेशान नजर आ रहे हो? छात्र ने कहा- मैं घरवालों के ताने सुन-सुन कर परेशान हो गया हूँ, अब मैं जीना नहीं चाहता। श्री चन्द्रप्रभ ने फिर उससे पूछा क्यों, ऐसा आपसे क्या हो गया? छात्र ने कहा- मैंने गलत तो कुछ नहीं किया, पर मेरे दिमाग में कोई भी चीज चढ़ती नहीं है, इसलिए घरवाले मुझसे परेशान हैं। श्री चन्द्रप्रभ उसे कुएँ पर ले गए और पूछा कुएँ पर क्या-क्या चीजें रखी हुई हैं? उसने कहा - बाल्टी और रस्सी। श्री चन्द्रप्रभ ने फिर पूछा - कुएँ की मेड पर लगा ये पत्थर घिसा हुआ कैसे है? उसने कहा- बार-बार रस्सी के
30 संबोधि टाइम्स
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आने-जाने के कारण ? श्री चन्द्रप्रभ ने कहा- जब रस्सी के बार-बार आने-जाने से कठोर पत्थर भी घिस सकता है तो सोचो हम लगातार कोशिश करके कुछ भी क्यों नहीं बन सकते। अगर आप भी मन में ठान लें और निरंतर कोशिश करना शुरू कर दें तो एक दिन अवश्य इस परेशानी पर जीत हासिल कर लेंगे। यह सुन छात्र का सोया आत्मविश्वास जग गया। उसने अपना निर्णय बदला और आगे बढ़ने की ठान ली।
इसी तरह श्री चन्द्रप्रभ ने जीवन प्रबंधन से जुड़े हर पहलू पर बेहतरीन गुर थमाए हैं। समय- प्रबंधन हो या दिनचर्या प्रबंधन, व्यक्तित्व विकास हो या कॅरियर निर्माण, प्रबंधन से जुड़े हर पहलू पर उनकी पकड़ मजबूत है। जीवन में जोश जगाने से जुड़ा उनका यह गीत युवाओं के लिए गीता का काम कर रहा है
जीएँ, ऐसा जीएँ, जो जीवन को महकाए । पंगु भी पर्वत पर चढ़कर जीत के गीत सुनाए । जीवन में हम जोश भरें, अपने सपने पूर्ण करें। साथ मिले तो लें सबका, नहीं मिले तो गम किसका । अर्जुन में बेहद दम है, एकलव्य भी कहीं कम है। हम भी दिल में लक्ष्य बसाकर जीवन सफल बनाएँ ।। संघर्षों से डरें नहीं, बिना मौत के मरें नहीं। खुद को बूढ़ा क्यों समझें, खुद को अपाहिज क्यों समझें । जिसने भी संघर्ष किया, उसको अपना लक्ष्य मिला। 'चन्द्र' स्वयं पुरुषार्थ जगाकर, सोया भाग्य जगाएँ ।।
श्री चन्द्रप्रभ का व्यक्तित्व निर्माण पर विस्तृत साहित्य प्रकाशित हुआ है। वे सफलता के लिए बेहतर सोच व बेहतर कार्यशैली अपनाने की सीख देते हैं। जीवन का नजरिया देते हुए उन्होंने कहा है, "दुनिया तो गेंद की तरह है खेलने वाला हो तो इस दुनिया को जिंदगी भर खेला जा सकता है। तुम अपनी इच्छाशक्ति का हॉर्लिक्स दुगुना करो, खेलने की ताकत खुद-ब-खुद बढ़ जाएगी।" उनके विचार नपुंसक हो चुकी चेतना को झंकृत कर देते हैं। वे कहते हैं, "हर गुरु-शिक्षक के पास हजारों शिष्य आते हैं, पर अर्जुन वही बनता है जो पूरी तन्मयता से अभ्यास करते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता है।" उन्होंने किसी भी कार्य को छोटा न मानने और प्रतिदिन कुछ नया करने की कोशिश करने की सीख दी है। वे कहते हैं, "दुनिया का कोई भी पत्थर एक ही बार में नहीं टूटता, पर दसवें वार में टूटने वाले पत्थर के लिए उन नौ वारों को अर्थहीन नहीं कहा जा सकता, जिनकी हर मार ने पत्थर को कमजोर किया था ।" वे कॅरियर अथवा सफलता को केवल आर्थिक स्तर पर नहीं तोलते वरन् सम्पूर्ण जीवन के विकास से जोड़ते हैं । सर्वधर्म सद्भाव के प्रणेता एवं सत्य के अनन्य प्रेमी
श्री चन्द्रप्रभ पंथ, परम्परा अथवा धर्म से नहीं, सत्य से प्रेम रखते हैं। उन्होंने हर महापुरुष के अनुभवों को चुराया है और उनकी अच्छी बातों को अपनाकर, उन पर विस्तृत व्याख्याएँ भी की हैं। उनकी नज़रों में, "राम, कृष्ण, महावीर, जीसस, बुद्ध एक ही बगीचे में खिले हुए अलग-अलग फूल हैं जो धर्म रूपी बगीचे की सुंदरता को घटाते नहीं, बढ़ाते हैं।" वे सर्वधर्म के महान प्रवक्ता हैं। उन्होंने न केवल भारतीय वरन् पाश्चात्य धर्म साहित्य का भी गहरा अध्ययन किया है। उनकी
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