SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खुद जिओ सबको जीने दो, यही मंत्र अपनाना है। इसी मंत्र से विश्वशांति का, घर-घर दीप जलाना है।। मंदिर है यदि दूर तो हमसे, एक काम ऐसा कर लें। रोते हुए किसी बच्चे के जीवन में खुशियाँ भर दें। खुद भी महकें फूलों जैसे, औरों को महकाना है।। वो कैसा इंसान कि जो अपने ही खातिर जिया करे । वो ही है इंसान कि जो औरों के आँसू पिया करे। 'चन्द्र' प्रेम की राहों से, संसार को स्वर्ग बनाना है ।। श्री चन्द्रप्रभ ने धर्म करने वालों के जीवन में विद्यमान कथनीकरनी के भेद पर व्यंग्य किया है। उन्होंने धर्म को बाहरी रूप-रूपायों में नहीं, भीतर की पवित्रता में माना है। उन्होंने महावीर- जैसे - बुद्ध महापुरुषों की पूजा करने की बजाय उनके जैसा बनने की सीख दी है। वे भीतरी परिवर्तनों के बिना बाहरी परिवर्तनों को गौण समझते हैं। इस तरह उन्होंने धर्म को रूढ़िवाद, परम्परावाद, पंथवाद की संकीर्णता से मुक्त किया है और उसे जीवन सापेक्ष बनाकर उसे युगानुरूप बनाया है। सफल मनोचिकित्सक एवं आरोग्यदाता श्री चन्द्रप्रभ तन, मन और जीवन की चिकित्सा करने में माहिर हैं। उनके साहित्य एवं प्रवचनों से लोगों की मानसिक दुर्बलता दूर हो जाती है। युवाओं की जिंदगी में नए उत्साह का संचार होने लगता है और वृद्धजनों का बुढ़ापा गायब हो जाता है। उन्होंने गुस्सा, चिंता, तनाव, मनो- दुर्बलता को स्वास्थ्य, शांति और सफलता का शत्रु बताया है। उन्होंने इनके कारणों व परिणामों पर भी विस्तृत चर्चाएँ की हैं। वे इन्हें जीतने को जीवन की असली साधना बताते हैं। उन्होंने इन पर विजय पाने के लिए मुस्कान, मौन व क्षमा जैसे मंत्रों को अपनाने की सलाह देने के साथ अनेक व्यावहारिक गुर भी दिए हैं। इस संदर्भ में कुछ घटनाप्रसंग इस प्रकार हैं दो घंटे का एपिसोड दस मिनिट में पूरा एक सज्जन ने श्री चन्द्रप्रभ से कहा मैं और मेरी पत्नी में आए दिन किसी-न-किसी बात को लेकर अनबन हो जाती है। कल की ही बात है। मैं ऑफिस जाने की जल्दी में था, जाते-जाते पत्नी ने दो-चार काम बता दिए। जल्दी में दिमाग से ये बातें फिसल गईं। शाम को घर वापस आया तो पत्नी चिल्लाने लगी कि मैं आपका हर काम पूरा करती हूँ और आप ठहरे भुलक्कड़, जो मेरे दो-चार काम भी नहीं करते। मैंने उससे कहा कागज पर लिखकर नहीं दे सकती थीं क्या? उसने कहा- आप फोन से नहीं पूछ सकते थे क्या? बस इस छोटी-सी बात को लेकर तकरार हो गई। अब आप ही बताएँ कि मैं क्या करूँ? श्री चन्द्रप्रभ ने कहाआप मेरी केवल एक बात गाँठ बाँध लें फिर यह नौबत नहीं आएगी। उन्होंने पूछा कौनसी बात? पूज्यश्री ने कहा अब पत्नी जब भी चिल्लाने लगे तो आप दस मिनिट के लिए गूँगे बन जाएँ। उन्होंने कहा - गूँगा बनने से तो मुसीबत और बढ़ जाएगी। पूज्यश्री ने कहा- अगर अनबन दूर करनी है तो मेरा कहना मानिए, अन्यथा जैसी आपकी मर्जी । उन्हें बात समझ में आ गई। दो दिन बाद उस सज्जन ने कहागुरुजी, आपकी बात ने तो चमत्कार कर दिया। पूज्यश्री ने पूछा - क्या हुआ? उन्होंने कहा- कल मैं फिर कोई सामान लाना भूल गया। घर पहुँचते ही पत्नी चिल्लाने लगी। मैं दस मिनिट के लिए गूँगा बन गया। Jain Education International पत्नी ने थोड़ी देर फाँ-फूँ किया, फिर अपने आप चुप हो गई। एक घंटे बाद उसने मुझसे सॉरी भी कहा। इस तरह दो घंटे का एपिसोड मात्र द मिनिट में पूरा हो गया। शहद जैसे बनो श्री चन्द्रप्रभ के पास एक बहिन आई। उसने कहा मेरे और मेरे पति के बीच बनती नहीं थी सो मैं एक पंडित के पास गई। मैने अपनी समस्या बताई तो उसने एक मंत्र लिखकर दिया और कहा - शहद की शीशी में इस मंत्र को डाल देना और रोज सुबह उठकर इस शीशी को देखना । मात्र 27 दिनों में तेरे व तेरे पति की अनबन सदा के लिए दूर हो जाएगी। बहिन ने गुरुजी से कहा- आज 27 नहीं, पूरे 57 दिन हो गए हैं, फिर भी स्थिति वैसी की वैसी है। अब आप ही बताइए कि मैं करूँ तो क्या करूँ? श्री चन्द्रप्रभ ने कहा यूँ टोटकों से अगर सारी बात बन जाए तो पूरी दुनिया सुधर जाए। आप तो घर जाकर एक काम कीजिए कि शहद की शीशी को देखने के बजाय, शहद को पानी में घोलकर पी लीजिए और संकल्प ले लीजिए कि जैसे शहद मिठास से भरा हुआ है वैसे ही आज से मैं भी अपने जबान से सदा मीठा बोलूँगी। अगर आपने मेरे कहे अनुसार मीठा बोलना शुरू कर दिया, तो पति तो क्या पूरा परिवार मात्र 7 दिनों आपका भक्त बन जाएगा। बहिन ने गुरुजी को धन्यवाद देते हुए कहा- आपकी बात बिल्कुल सही है। अगर मैं जबान को मीठा रखती तो ये अनबन की नौबत ही न आती। मौनपूर्वक भोजन का चमत्कार एक सज्जन ने बताया कि मेरी खाने में कमियाँ निकालने की आदत थी। जब भी मैं भोजन करने बैठता, तो मेरी पत्नी या बेटी से तकरार हो जाती। मैं कुछ कहता तो वे कह देतीं - आप किचन में मनमर्जी जैसा बनाकर खा लो या फिर नमक-मिर्ची-नींबू लाकर पटक देतीं। एक बार मुझे श्री चन्द्रप्रभ से मौनपूर्वक भोजन करने की प्रेरणा मिली। मैंने एक महीने तक मौनपूर्वक भोजन करने की प्रतिज्ञा ले ली। दो-चार दिन तो मुझे अजीब-सा लगा। मेरी थाली में जैसा भी आता मैं उसे मौनपूर्वक खा लेता। परिवार वालों को लगा - ये तो कुछ बोलते नहीं इसलिए इन्हें चखकर ही भोजन परोसना चाहिए। अब भोजन भी एकदम स्वादिष्ट बनकर आने लगा। मेरे इस छोटे से नियम ने मेरे साथ घरवालों को भी बदल दिया । - - For Personal & Private Use Only श्री चन्द्रप्रभ ने मानसिक रोगों के साथ-साथ शारीरिक रोगों की चिकित्सा के लिए भी मार्गदर्शन दिया है। वे असात्विक आहार को बीमारी की मूल वजह बताते हैं। उन्होंने शरीर को भगवान का मंदिर मानने व अतिभोग- अतित्याग की बजाय बीच का मार्ग अपनाने की प्रेरणा दी है। उन्होंने आहार में छिपे आरोग्य के रहस्य को प्रकट करते हुए स्वास्थ्य हेतु निम्न सूत्रों को जोड़ने की सलाह दी है - स्वाद की बजाय स्वास्थ्य प्रधान भोजन करें; अति तेल, घी, मिर्च-मसालेदार भोजन, दूषित, दुर्गंधित भोजन व मांसाहार से बचें हितकारी, सीमित एवं ऋतु अनुसार भोजन लें और भोजन में सभी चीजों का पर्याप्त मात्रा में सेवन करें। उन्होंने हेल्थ-सिक्रेट बताते हुए कहा है, "अन्न को करो आधा, सब्जी को करो दुगुना, पानी पियो तिगुना और हँसी को करो चौगुना ।" कैसे बनाएँ अपना कॅरियर, शानदार जीवन के दमदार नुस्खे, कैसे जिएँ क्रोध एवं चिंतामुक्त जीवन, सफल होना है तो..... शांति पाने का सरल रास्ता आदि पुस्तकों में उन्होंने शारीरिक-मानसिक संबोधि टाइम्स 29
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy