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________________ संबोधि टाइम्प विशेषांक : पूज्य श्री चन्द्रप्रभ के दिव्य जीवन एवं महान जीवन-दृष्टि पर शोधपरक विनम्र प्रस्तुति हृदय के उद्गार नये युग को * नई देन श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन भारतीय संस्कृति एवं दर्शनशास्त्र की अमूल्य धरोहर है। श्री चन्द्रप्रभ ने प्राचीन सांस्कृतिक एवं दार्शनिक मूल्यों को नए तथा व्यावहारिक स्वरूप में प्रस्तुत कर भारतीय दर्शन को नया आयाम दिया है। उनका दर्शन मूलत: जीवन-दृष्टि से जुड़ा दर्शन है। उन्होंने दर्शन को जीवन-सापेक्ष स्वरूप में प्रस्तुत कर उसे जनमानस के लिए उपयोगी बनाया है। श्री चन्द्रप्रभ ने संबोधि साधना का श्रेष्ठ मार्ग प्रतिपादित कर आध्यात्मिक सिद्धांतों को वैज्ञानिक एवं प्रायोगिक स्वरूप प्रदान किया है। उनके दर्शन में जीवन-निर्माण, व्यक्तित्व-विकास, केरियर, स्वास्थ्य-लाभ, पारिवारिक प्रेम, सामाजिक एकता, धार्मिक समरसता, आध्यात्मिक उन्नति, राष्ट्रीय उत्थान एवं वैश्विक समस्याओं के अत्यंत व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत किए गए हैं। ___ श्री चन्द्रप्रभ किसी धर्म, वेश, परम्परा या किसी महापुरुष का नहीं, वरन् जीवन की खुली किताब का नाम है। वे वही कहते हैं, जिसे वे जीते हैं और वे वही जीते हैं जैसा उन्हें 'जीवन' से ज़वाब मिलता है। इसलिए उनके पास वैचारिक चंचलता नहीं, हृदय की नीरवता है, किताबों का ज्ञान कम जीवन का अनुभव ज़्यादा है। मैंने देखा, श्री चन्द्रप्रभ में न तो शिष्य बनाने और बढाने की चाहत है, न विश्व में स्वयं को स्थापित करने की तमन्ना है, न किसी पंथ-मज़हब को स्थापित करने की ख़्वाहिश है, न किन्हीं मंदिरों या आश्रमों को बनाने की इच्छा है, यही नहीं वे तो मोक्ष या निर्वाण तक की भी आकांक्षा नहीं रखते हैं। वे दीपक की तरह प्रकाशित हैं, अगर कोई उनसे प्रकाशित होना चाहे। वे फूल की तरह खिले हुए हैं अगर कोई उनसे सुवास लेना चाहे और कोई जीवन का संगीत सुनना चाहे तो उनके हृदय से वीणा के सुर अहर्निश फूट रहे हैं। श्री गुरु की कृपा श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन साहित्य, सिद्धान्त एवं व्यवहार लेखक मुनि शांतिप्रिय सागर संबोधि टाइम्स »3 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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