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________________ अमीर बनना चाहेंगे।" श्री चन्द्रप्रभ ने धर्मक्षेत्र में बढ़ रहे पैसे के प्रभाव कभी गीता भी। आप शास्त्रों के नहीं, अच्छाइयों के पुजारी बनिए। पर कुठाराघात किया है। वे कहते हैं, "मनुष्य कितने ही गलत तरीकों दुनिया के किसी भी महापुरुष ने हमें लड़ना-लड़ाना नहीं सिखाया। से धन कमाए, पर समाज में धर्म के नाम दो-चार लाख का चढ़ावा सब हमें प्रेम और मानवता का पाठ पढ़ाते हैं। इसलिए हमें सभी बोलते ही सारे पाप ढक जाते हैं। समाज ऐसे चढ़ावे लेने वाले लोगों को महापुरुषों का सम्मान करना चाहिए और हर धर्म की अच्छी बातों को भाग्यशाली भी घोषित करता है, माला-तिलक पहनाता है, मगर यह ग्रहण करने की कोशिश करनी चाहिए।" कोई नहीं पूछता कि यह दान-चढ़ावा ईमानदारी से आया है या बेईमानी इस तरह श्री चन्द्रप्रभ ने एक ओर व्यक्ति को धार्मिक संकीर्णता से से। अर्जित धन से केवल अवसर विशेष के धर्मात्मा होते हैं। ऐसे लोग ऊपर उठाया है, वहीं दूसरी ओर उसे अच्छा इंसान बनने की शिक्षा दी केवल दिखावटी धर्म करते हैं।" इस तरह श्री चन्द्रप्रभ ने धर्म में आई है। उनकी दृष्टि में, एक अच्छा और नेक इंसान बनना अपने आप में विकृतियों के प्रति समाज को जागरूक किया है और धर्म तथा धार्मिक एक अच्छा हिंदू, एक अच्छा जैन, एक अच्छा मुसलमान खुद ही बन मूल्यों को शुद्ध रूप से जीने तथा स्थापित करने पर जोर दिया है। जाना है। एक अच्छा मुसलमान बनने का अर्थ यह नहीं है कि तुम एक धर्म और विराटता - श्री चन्द्रप्रभ ने न केवल धर्म को विराट अच्छे इंसान बन गए, पर यदि तुम अपने आप ही एक अच्छे इंसान बन बनाया वरन् धर्म के नाम पर बनी दूरियों को पाटने के लिए महापुरुषों जाओ, तो तुम अपने आप ही एक अच्छे जैन, एक अच्छे हिन्दू और एवं धर्मशास्त्रों में भी निकटता स्थापित की। धरती पर ऐसे अनेक एक अच्छे मुसलमान बन जाओगे, क्योंकि तब तुम्हारे जीवन में कोई महापुरुष हुए जिन्होंने इंसान को निर्मल और पवित्र जीवन जीने का विरोधाभास न होगा।" इस प्रकार श्री चन्द्रप्रभ ने आज के इंसान को मार्ग दिखाया। मनुष्य महापुरुषों द्वारा दिखाए संदेशों को तो भूल गया है धर्म की नई सोच, नई जीवन दृष्टि प्रदान की है। और उनके नाम पर अनेक धार्मिक संगठन खड़े कर बैठा है। जिससे धर्म और जीवन सापेक्षता - श्री चन्द्रप्रभ के अनुसार दर्शन की महापुरुष बँट गए, उनके संदेश बँट गए और दूरियाँ बढ़ गईं। श्री सबसे बडी देन धर्म को जीवन-सापेक्ष स्वरूप प्रदान करना है। वे चन्द्रप्रभ ने महापुरुषों को सीमित दायरों से बाहर निकाला और उनके जीवन से जुड़े हुए धर्म-अध्यात्म को अपनाने के समर्थक हैं। उन्होंने प्रति सकारात्मक दृष्टि लाने का बोध दिया। उन्होंने कहा है, "संसार में जीवन-निर्माण में सहयोगी बनने वाले धर्म की विवेचना की है, वे अनेक धर्म, पंथ और सम्प्रदाय हैं। ये सब एक उपवन में खिले हुए कहते हैं, "धर्म हो या अध्यात्म, मुक्ति हो या निर्वाण, मेरी तो उसी में अलग-अलग रंग और खुशबू के फूलों की भाँति हैं लेकिन एक बात तो आस्था है. जो जीवन-सापेक्ष है। कार्य आज किया है तो परिणाम भी तय है कि फूल खिलने का तरीका सबका एक ही है । हर धर्म , पंथ, आज ही आना चाहिए। ध्यान किया और शांति मिली; मंदिर गए और सम्प्रदाय के महापुरुषों का एक ही उद्देश्य इंसान को बेहतर बनाना रहा परमात्मा की याद आई; दान दिया और भीतर सौभाग्य और आनंद है। मंदिर में टंगने वाले चित्रों के आधार पर महापुरुषों को नहीं बाँटना जाग्रत हुआ; सत्संग सुना और मन में शांति, करुणा साकार हुई तो चाहिए लेकिन हमने चित्रों और चारदीवारी में महापुरुषों को बाँटा और समझना कि किया गया धर्म-कर्म सार्थक हुआ।" वे पारलौकिक धर्म महापुरुषों को बाँटकर मानव-समाज को भी बाँट डाला।" इस तरह श्री में कम विश्वास रखते हैं। उन्होंने स्वर्ग पाने या नरक से बचने के लिए चन्द्रप्रभ ने महापुरुषों के प्रति विराट नजरिया रखने की प्रेरणा दी। धर्म करने की प्रेरणा नहीं दी है। उनका मानना है, "जो लोग केवल श्री चन्द्रप्रभ ने धर्म को जाति तक सीमित करने को अनुचित परलोक के लिए, परलोक की गति सुधारने के लिए धर्म करते हैं, उन्हें बताया है और हर महापुरुष से जीवन जीने से जुड़ी रोशनी प्राप्त करने जान लेना चाहिए कि धर्म परलोक को सुधारने का साधन नहीं है, वरन् का संदेश दिया है। वे कहते हैं, "जब-जब इंसान जैन, हिंदू, मुसलमान मनुष्य के वर्तमान जीवन को सुव्यवस्थित करने की प्रयोगशाला है।" और एक जाति का प्रतीक बना लेगा तब-तब धर्म सिमटेगा और वह श्री चन्द्रप्रभ ने स्वर्ग-नरक को जीवन के साथ जोड़कर प्रस्तुत एक पंथ या सम्प्रदाय का प्रतीक बन जाएगा। हम अपने नजरिये को किया जो कि उनका मौलिक चिंतन है। वे आसमान के स्वर्ग को पाने बेहतर, विराट और विशाल बनाएँ ताकि हिन्दू भी महावीर से कुछ की बजाय जीवन को ही स्वर्ग बनाने की शिक्षा देते हैं। उनकी दृष्टि में, सीख सकें, जैन भी राम से कुछ न कुछ ग्रहण कर सकें। दुराव देखेंगे "मनुष्य के जीवन में ही स्वर्ग है और मनुष्य के जीवन में ही नरक हैं। दराव दिखाई पड़ेगा और समन्वय बनाना चाहेंगे तो समन्वय स्थापित प्रेम और शांति के क्षणों में स्वर्ग है,आक्रोश और उत्तेजना के क्षण नरक होगा। व्यक्ति अपने कैनवास को बड़ा बनाए ताकि वह बड़े चित्र उकेर है। हम प्रेम. करुणा, समता, क्षमा, आत्मीयता और भाईचारे से जिएँ,ये सके।" सब स्वर्ग के सोपान हैं।" श्री चन्द्रप्रभ व्यक्ति के मरने के बाद उसकी श्री चन्द्रप्रभ सर्वधर्म-सदभाव में विश्वास रखते हैं। वे धार्मिक सद्गति के लिए होने वाली श्रद्धांजलि सभाओं को भी अर्थहीन मानते एकता के समर्थक हैं, उन्होंने सभी धर्मों, महापुरुषों और शास्त्रों को हैं। उन्होंने व्यक्ति को जीते-जी अपनी सद्गति की व्यवस्था करके जाने निकट लाने का प्रयास किया है। साम्प्रदायिक दृष्टि के चलते अपने की प्रेरणा दी है। धर्मशास्त्रों तक सीमित रहने वाले मनुष्य को उन्होंने सम्यक् दृष्टि प्रदान पारिवारिक धर्म - श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में पारिवारिक धर्म का की है। उनका मानना है, "दुनिया के हर धर्म ने इंसानियत को एक संदर प्ररूपण हआ है। उनका परिवार-दर्शन बेजोड़ है। उन्होंने अच्छी किताब दी है। आप महावीर के उपदेशों को भी पढ़िए और पारिवारिक कर्तव्यों के निर्वाह को धर्म की नींव कहा है। वे संन्यास लेने मोहम्मद साहब के उपदेशों को भी। कभी बाइबिल को पढ़ने का समय से भी ज्यादा कठिन माता-पिता की सेवा-सुश्रूषा करने को मानते हैं। भी निकालिए तो कभी उपनिषदों को भी। कभी रामायण को पढ़िए तो उनका पारिवारिक रिश्तों. वसीयतनामा, कर्तव्य निर्वाह एवं माँ की Ja126 » संबोधि टाइम्स For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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