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राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं की स्थापना
प्रकाशन किए हैं। हालाँकि श्री चन्द्रप्रभ के साहित्य को देश के कई __भारतीय दर्शन में संस्कृति का हर दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण स्थान
वरिष्ठ प्रकाशकों ने भी प्रकाशित किया है, तथापि उनका अधिकांश । आम जनमानस को हमारे सांस्कृतिक वैभव से परिचित करवाने के साहित्य इसी फाउंडेशन से प्रकाशित हुआ है। फाउंडेशन से प्रकाशित लिए श्री चन्द्रप्रभ के निर्देशन में झारखंड के सम्मेतशिखर महातीर्थ में अल्पमाला साहित्य आमजनमानस में इतना लोकप्रिय होता है कि कोई सर्वप्रथम भव्य जैन म्यूजियम की स्थापना हुई, जहाँ प्रतिवर्ष हजारों
भी पुस्तक एक वर्ष पूर्ण होने से पहले ही समाप्त हो जाती है। इण्डिया श्रद्धालु पहुँचकर जैन संस्कृति से रूबरू होते हैं। जैनत्व को मानवीय
टूडे प्रकाशन समूह ने तो इस फाउंडेशन को अपने मुखपृष्ठ पर जगह
टूड प्रकाशन समूह न ता इस फाउड एवं आध्यात्मिक दृष्टि से जनमानस को परिचित कराना जैन म्यूजियम
परिनित कराना जैन बलिया दी है और इसे देश का गरिमापूर्ण प्रकाशक स्वीकार किया है। का मुख्य उद्देश्य है। म्यूजियम के बाहर भगवान महावीर की मनोरम संबोधि साधना मार्ग और व्यक्तित्व-निर्माण से जुड़े दिव्य वचनों ध्यानस्थ प्रतिमा और भगवान पार्श्वनाथ की योगमय दिव्य प्रतिमा को आम जनमानस तक पहुँचाने के लिए संबोधि टाइम्स नामक विराजमान है। म्यूजियम में प्रवेश करते ही तीर्थंकरों एवं आदर्श पुरुषों विचारप्रधान पत्रिका का प्रकाशन भी यही फाउंडेशन करता है जिसके के प्राचीन स्वर्ण-चित्र, ताडपत्र पर लिखित शास्त्रों के नमूने, हाथीदाँत पूरे देश में तकरीबन दो लाख पाठक हैं। देशभर में लाखों लोगों के पर नक्काशी की गई जिन प्रतिमाएँ, चंदन काष्ठ पर अंकित शिल्प विचारों को प्रभावित एवं प्रेरित करने वाली इस मासिक पत्रिका में श्रेष्ठ वैभव, देश व विदेश द्वारा जैन धर्म पर जारी डाक टिकटों का अनोखा ज्ञान एवं पवित्र चिंतन को समाहित किया जाता है। जिंदगी को चार्ज संकलर्शित होता मालिनिन नावलों के टाप करने वाली इस पत्रिका के पहले पृष्ठ पर श्री चन्द्रप्रभ के प्रकाशित होने तीर्थंकरों की छवियों का अंकन, बदाम व काजू की आकृति में जिनत्व
वाले प्रेरक वक्तव्य आम जिंदगी को नई दिशा देते हैं ।जैन म्यूजियम का का परिदर्शन, प्रभावी चमत्कारी यंत्र, विविध प्रकार की मालाएँ, ताम्र निर्माण भी इसी फा
निर्माण भी इसी फाउंडेशन ने करवाया जो कि पूर्वी भारत में अपने आप एवं रजत पत्रों पर भगवान ऋषभ, लक्ष्मी, सरस्वती, पद्मावती आदि म अनूठा आर अद्भुत है। की उभरती छवियों से म्यूजियम में जैन संस्कृति का दिग्दर्शन छिपा प्रवचनों का राष्ट्रव्यापी प्रभाव हुआ नजर आता है।
श्री चन्द्रप्रभ के न केवल साहित्य में वरन् प्रवचनों में भी जादू है, श्री चन्द्रप्रभ की प्रेरणा से म्यूजियम में जैन तीर्थंकरों एवं महापुरुषों उनका एक बार प्रवचन सुन लेने वाला व्यक्ति इस तरह सम्मोहित हो के जीवन से जुड़ी विभिन्न घटनाक्रमों को झाँकियों के माध्यम से जाता है कि जीवनभर उन्हीं को सुनना चाहता है। उनके प्रवचनों का संजीवित किया गया है। इसके अतिरिक्त म्यूजियम में श्री जितयशा व्यक्तित्व पर ऐसा प्रभाव पड़ता है कि व्यक्ति स्वतःही बदल जाता है। फाउंडेशन का संपूर्ण साहित्य, वीसीडी एवं विश्वभर का प्रसिद्ध सबसे खास बात यह है कि उनके प्रवचनों की शैली, शब्दचयन, साहित्य भी अध्ययन के लिए रखा गया है। इस तरह यह म्यूजियम जैन लयबद्धता, क्रमबद्धता, विषय-विवेचन इतना सरल, संजीदा और संस्कृति एवं सभ्यता को उजागर करने वाला देश का प्रमुख केन्द्र है। प्रभावशाली होता है कि बच्चे से लेकर वृद्ध व्यक्ति के मानस-पटल पर तत्पश्चात श्री चन्द्रप्रभ के मार्गदर्शन में राजस्थान प्रदेश के जोधपुर
अमिट अक्षरों की तरह अंकित हो जाता है। श्री चन्द्रप्रभ जहाँ पर भी शहर में कायलाना रोड पर विख्यात साधना स्थली संबोधि धाम का
प्रवचन देते हैं, उन्हें सुनने हजारों लोग उमड़ते हैं। वस्तुतः उनके निर्माण हुआ। जहाँ पहुँचने मात्र से मन को शांति मिलती है एवं
प्रवचनों में ऊँची एवं ऊपरी बातें कम व्यावहारिक बातें अधिक होती अध्यात्म का प्रसाद प्राप्त होता है। संबोधि साधना मार्ग का राष्ट्रीय केन्द्र
हैं। भीलवाड़ा के पूर्व कलेक्टर राजीव सिंह ठाकुर का कहना है, संबोधि धाम से प्रतिवर्ष व्यापक स्तर पर सामाजिक, मानवीय,
"पूज्यश्री के प्रवचनों ने जनमानस पर जो जबरदस्त प्रभाव डाला है वह साहित्यिक आदि अनेक सेवाएँ सम्पन्न होती हैं। वहाँ अष्टापद मंदिर,
अपने आप में एक ऐतिहासिक काम है।" संगम ग्रुप, भीलवाड़ा के दादावाड़ी, गुरु मंदिर, संबोधि साधना सभागार, सर्वधर्म मंदिर, साहित्य
चेयरमैन रामपाल सोनी के अनुसार, “अत्यधिक व्यस्तता होने के मंदिर, स्वाध्याय मंदिर, जयश्रीदेवी मनस चिकित्सा केन्द्र, गुरु महिमा
बावजूद मैंने अनेक बार आजाद चौक में पहुँचकर इन राष्ट्रीय संतों के मेडिकल रिलीफ सोसायटी निर्मित हैं एवं आवास व भोजन की सम्पूर्ण
संदेशों को सुना। इनकी हर बात इतनी सीधी, सरल और सटीक होती
है कि अनायास ही हृदय में उतर जाती है।" उनके प्रवचन-प्रभावकता सुविधायुक्त व्यवस्था उपलब्ध है। यहाँ प्रतिवर्ष लाखों लोग पहुँचकर जीवन जीने के नए पाठ सीखते हैं। यहाँ आयोजित संबोधि ध्यान योग
से जुड़े कुछ प्रसंग इस प्रकार हैं - साधना के आवासीय शिविरों में भी पूरे देश से साधक पहुँचते हैं।
कुलपति हुए आह्लादित - सन् 1985 में श्री चन्द्रप्रभ सहयोगी
संतों के साथ कोलकाता में चातुर्मास कर रहे थे। उनके साहित्य सत्साहित्य प्रकाशन के क्षेत्र में अपनी अग्रणी भूमिका निभाने
महोपाध्याय के शोध-प्रबंध का वायवा (साक्षात्कार) लेने हेतु हिन्दी वाली श्री जितयशा फाउंडेशन की स्थापना भी श्री चन्द्रप्रभ की प्रेरणा से
विश्वविद्यालय, इलाहाबाद के कुलपति डॉ. प्रभात शास्त्री दो अन्य हुई है। यह फाउंडेशन अब तक संतश्री ललितप्रभ जी एवं संतश्री
प्रोफेसरों के साथ आए थे। दोपहर में शोध-प्रबंध के बारे में परिचर्चा चन्द्रप्रभ जी की सैकड़ों पुस्तकों का प्रकाशन कर चुका है। अल्पमोली,
होने वाली थी। उस दिन सुबह 9.00 से 10.30 बजे तक 'साधना के श्रेष्ठ तथा सुंदर साहित्य के प्रकाशन में यह संस्थान पूरे देश भर में
प्रयोग' पर श्री चन्द्रप्रभ का दिव्य सत्संग होना था। डॉ. प्रभात शास्त्री लोकप्रिय है। श्री चन्द्रप्रभ ने गीताप्रेस, गोरखपुर से प्रेरणा लेकर इस
सहित सभी प्रोफेसरों ने उनके प्रवचन का श्रवण किया और अंततः फाउंडेशन का गठन किया। जीवन-विकास, संस्कार-निर्माण,
शास्त्री जी ने खड़े होकर कहा, "मैं आया तो हूँ इनके शोध-प्रबंध का कॅरियर-निर्माण, स्वास्थ्य लाभ, पारिवारिक समन्वय, राष्ट्र-निर्माण के
वायवा लेने के लिए, पर साधना पर दिए गए इनके सत्संग को सुनकर साथ धर्म, अध्यात्म और ध्यान योग साधना पर इस संस्थान ने बहुतेरे
मैं इतना आह्लादित हो उठा हूँ कि मन ही मन इनको अपना गुरु मान 10» संबोधि टाइम्स
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