SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६ ऊर्जा का समीकरण है । धूम्रपान की चिन्ता छोड़ो । ध्यान में डूबो । वह अपने आप छूट जाएगा । स्वयं का रस जग गया, तो परायों के प्रति जुड़ाव स्वतः कम होगा । __मेरे पास लोग आते हैं, कहते हैं 'मुझे गुस्सा बहुत आता है, इसे छोड़ने के लिए मैं क्या करूं ?' मैं उन्हें रास्ता बताता हूँ कि रोजाना एक घण्टा समग्रता के साथ ध्यान कर लिया करो । वे पूछते हैं साहब ! मैं तो पूछ रहा हूँ गुस्सा कैसे कम करूं और आप कहते हैं 'ध्यान करो' । इन दोनों का तो तालमेल ही नहीं बैठता मेरी समझ में । मैं उसे समझाता हूं कि तू गुस्से की माथापच्ची को छोड़ दे । अगर सिगरेट पीता है तो उसकी स्मृति से हल्का हो जा । तू भूल जा कि सिगरेट पीता है । तुम्हारा काम सिर्फ यह है कि सुबह-शाम एक-एक घण्टा ध्यान कर लो । ध्यान की यह गोली, जो तुम सुबह लोगे, दिन-भर असर करेगी और शाम को जो खुराक लोगे, वह अगले दिन सुबह तक असर करेगी । तुम सात दिन तक ऐसा करके देख लो, फिर बताना कि तुम्हारा गुस्सा कम हुआ या नहीं । मेरा प्रयास सिर्फ इतना है कि व्यक्ति अपनी ऊर्जा को एक जगह ले जाकर केन्द्रित कर ले । ऊर्जा को सिगरेट में बाँटा, धन में बाँटोगे । ऊर्जा जितनी बँटती है, वहाँ तृष्णा का जन्म होता है, कामना पैदा होती है और जहाँ कामना पैदा होगी, वहाँ उतनी ही मृत्यु निकट होगी । आदमी अपने भीतर की ऊर्जा को एकत्र करने का प्रसास करे । ऐसा आदमी ही संकल्पवान है | आदमी संकल्प के साथ कुछ पा सकता है । इसलिए लड़ो ध्यान से, मुठभेड़ ध्यान से करो । धूम्रपान भूल जाना, सिर्फ ध्यान ही ध्यान शेष रह जाए । लड़ना हो तो ध्यान से लड़ो, धूम्रपान से क्या लड़ना । एक बार शेर और गधा जंगल में आमने-सामने मिल गए । गधे ने कहा, 'मैं तुमसे युद्ध करूंगा ।' शेर ने कहा- 'तू मेरे से क्या लड़ेगा ?' गधा बोला- 'ज्यादा शेखी मत बघार । मेरी एक लात पड़ गई तो तू कहीं-का-कहीं पहुंच जाएगा ।' शेर थोड़ी देर तक तो गधे की बक-बक सुनता रहा, फिर एक तरफ चल दिया । अब गधा अपनी हांकने लगा- 'मैंने शेर को भगा दिया' । इधर शेर को रास्ते में एक लोमड़ी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003892
Book TitleChale Man ke Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy