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________________ वर्तमान की विपश्यना खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पल भर की तलास में मैं तो तेरे पास में । वर्तमान है । वर्तमान में जीना योग का प्रवेश-द्वार है । योग का अनुशासन वर्तमान में जगना है । जागृति सुषुप्ति और स्वप्न से बेहतर स्थिति है । जागरण ही तूर्या अवस्था के फूल खिलाता है । मन को जागकर ही देखा-परखा जा सकता है । जो जगा, उसका मन सो गया । मन का सोना मस्तिष्क से हृदय में जाने का मार्ग खोलना है । योग की पहली शर्त मन की अडिगता है । मनोमुक्ति योग-प्रवेश का अनिवार्य पहलू है । मन की सारी डिगाहट अतीत और भविष्य के इशारे पर है । डिगता, झूलता मन कभी भी सम्यक् दर्शन का सूत्रधार नहीं बन सकता । वर्तमान में, प्राप्त क्षण में मन का जगना मनुष्य और आध्यात्मिक समस्याओं से विमुक्ति है। जो ऊपर उठ चुका है समय से, वह मन से भी उपरत हो चुका है। मन के पार जाने वाला ही चैतन्य-जगत के आनन्द में निमग्न होता है। इसलिए ध्यान करने से वर्तमान को अपना समझो, ताकि ध्यान में मन अतीत की फूलझड़ी न छोड़े, भविष्य के आकाश-सुमन का झाँसा न दे । __ यदि ध्यान में जीना चाहते हो, ध्यान करना चाहते हो, तो अतीत की स्मृति और भविष्य की कल्पना- दोनों न हों । दोनों को लुप्त हो जाने दो, मिट जाने दो । जब हमारे आमने-सामने कुछ न होगा- न आकर्षण, न विकर्षण, न कोई चंचल तरंग, तब न तो रहेगा सागर की लहरों की तरह आता-जाता समय, और न रहेगी मन की धूम्रघिरी जमीन । ऐसे क्षणों में जो कुछ भी होगा, वह मात्र व्यक्तित्व का होगा, अस्तित्व के लिए होगा । जब कुछ भी न होगा, तभी हम ध्यान में होंगे । स्वागत है इस चैतन्य-दशा का, जीवन के अमृत-महोत्सव का । 000 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003892
Book TitleChale Man ke Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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